शक्तिफार्मः बांग्ला संस्कृति का आइना है लोक संगीत बाऊल गान

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Published By Shobhit Singh
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शक्तिफार्म, अमृत विचार। देवनगर में आयोजित काली पूजा महोत्सव में कोलकाता से आए लोक कलाकारों ले प्रस्तुत बाऊल संगीत से लोगों का मन मोह लिया। बाऊल संगीत बांग्ला संस्कृति का आइना माना जाता है।

बाऊल एक प्रकार का लोक (फोक) गायन है। इसका गायन करने वाले को बंगाल में बाऊल कहते हैं। इसी बाऊल का दूसरा रूप भाट होता है। उत्तर-प्रदेश में इसे फकीर या जोगी भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर बाऊल, फकीर, साई, दरबेस, जोगी एवं भाट बाऊल के ही रूप हैं। इन सभी में एक समानता होती है कि ये ईश्वर की भक्ति में इस तरह लीन होते हैं कि इन्हें बाऊल पागल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत बांग्लादेश से हुई।

बाऊल का रहन-सहन, पहनावा एवं जीवन व्यतीत करने का तरीका वैष्णव धर्म के बहुत करीब होता है। ज्यादातर बाऊल वैष्णव धर्म का पालन करते हैं। वैष्णव धर्म में पुरुष वैष्णव एवं स्त्री को वैष्णव कहते हैं। बंगाली समुदाय में बाऊल संगीत खासा लोकप्रिय है। देवनगर में आयोजित काली पूजा महोत्सव में कोलकाता से पहुंचे लोक कलाकारों द्वारा पेश किए गए बाऊल संगीत को सुनकर स्रोता आनंदित हो उठे।

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