महिलाओं के खिलाफ अपराधों में जीरो टॉलरेंस की नीति अनिवार्य :इलाहाबाद हाईकोर्ट

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में महिला न्यायिक अधिकारी से बदसलूकी करने वाले अधिवक्ता को मिली जमानत रद्द करते हुए कहा कि अधिवक्ता द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न से जिला न्यायालय की महिला पीठासीन अधिकारियों के मन में भय उत्पन्न हुआ है। ऐसी स्थिति में न्यायालय के किसी भी पीठासीन अधिकारी से न्यायिक प्रशासन के अपने आधिकारिक कर्तव्यों का स्वतंत्र, निष्पक्ष, संतुलित और शांत मन के साथ निर्वहन करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जहां न्यायालय का पीठासीन अधिकारी स्वयं सुरक्षित नहीं है, यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह उन वादियों की रक्षा करने में सक्षम होगी, जो अपने शील की रक्षा के लिए उनके समक्ष उपस्थित होती है। 

इस न्यायालय का दृढ़ मत है कि इससे पहले कि यह बात और फैले अभियुक्त/ विपक्षी के विरुद्ध आपराधिक अवमानना ​​​​के लिए कार्यवाही शुरू करके सख्ती से निपटा जाना चाहिए। ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति अनिवार्य हो गई है। इस न्यायालय ने पाया कि विपक्षी अभय प्रताप का आचरण न केवल आपराधिक प्रकृति का था, बल्कि अदालत के एक अधिकारी के लिए अनुचित था और उसने अदालत की आपराधिक अवमानना ​​भी की, इसलिए निचली अदालत द्वारा उसे दी गई जमानत रद्द की जाती है। इसके साथ ही विपक्षी को संबंधित न्यायालय के समक्ष तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है और निचली अदालत को छह महीने के भीतर विरोधी पक्ष के खिलाफ मुकदमे को पूरा करने का निर्देश दिया गया। 

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने ईशा अग्रवाल की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया| मामले में तथ्यों के अनुसार आवेदक वर्तमान में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, कानपुर नगर के पद पर पदस्थ है। विचाराधीन घटना के समय वह जिला न्यायालय, महराजगंज में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) / न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात थीं। जब वह अपने न्यायिक कर्तव्य का पालन कर रही थी, तो विरोधी ने याची के फेसबुक अकाउंट पर संदेशों के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजना और कुछ अपमानजनक टिप्पणियां करना शुरू कर दिया। इसके बाद विरोधी ने आवेदक का आधिकारिक मोबाइल नंबर प्राप्त किया और उस पर संदेश भेजना शुरू कर दिया। वह बिना किसी काम के उनकी कोर्ट में आया करता था और उन्हें लगातार देखता रहता था। जब सहनशीलता की हद विरोधी पक्ष ने पार कर दी, तब याची ने दिनांक 11.11.2022 को थाना कोतवाली, महराजगंज में उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई।   इसके बाद 23 नवंबर 2022 को आरोपी गिरफ्तार हो गया, लेकिन सत्र न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के मामले के आधार पर 17.12.2022 को उसे जमानत दे दी। 

याची ने व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होकर तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि वह एक न्यायिक अधिकारी है। जब विपक्षी उसके खिलाफ अवांछनीय और आपत्तिजनक व्यवहार में लिप्त था, तब वह अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने की स्थिति में नहीं थी और अपनी सुरक्षा के प्रति आशंकित थी।  विरोधी पक्ष द्वारा अपनी प्रतिष्ठा को खराब करने के लगातार डर में थी। उसका विवाह तय हो गया था और ये संदेश भविष्य में उसके वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकते थे। विरोधी खतरनाक प्रवृत्ति वाला है और इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। उसे दी गई जमानत रद्द कर दी जानी चाहिए। आरोपी के अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि वह याची से बिना शर्त माफी मांग रहा है, क्योंकि वह देश के कानून और न्यायिक बिरादरी के प्रत्येक सदस्य के प्रति सर्वोच्च सम्मान रखता है। उसने पहले किए गए कुकर्मों को न दोहराने का वचन दिया है।

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