2013 में राहुल गांधी ने ही फाड़ा था अध्यादेश, पास हो जाता तो आज ना जाती संसद सदस्यता, जानिए 72 साल पुराना कानून और लिली थॉमस केस  

2013 में राहुल गांधी ने ही फाड़ा था अध्यादेश, पास हो जाता तो आज ना जाती संसद सदस्यता, जानिए 72 साल पुराना कानून और लिली थॉमस केस  

नई दिल्ली। मोदी सरनेम बयान से जुड़े मानहानि केस में सूरत (गुजरात) की एक अदालत द्वारा 2 साल की सज़ा सुनाए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया है। इस मामले में राहुल को जमानत मिल गई थी। राहुल के पास इस सजा के खिलाफ अपील के लिए 30 दिन हैं। मोदी सरनेम बयान से जुड़े मानहानि केस में सूरत (गुजरात) की एक अदालत द्वारा 2 साल की सज़ा सुनाए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने पर कांग्रेस ने प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस कहा, वह...देश के लिए लगातार...लड़ रहे हैं...वह यह लड़ाई हर कीमत पर जारी रखेंगे और...मामले में न्यायसंगत कार्रवाई करेंगे।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को बड़ा झटका शुक्रवार को लगा। लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की संसद की सदस्यता को रद्द कर दिया है। दरअसल, सूरत कोर्ट ने मानहानि मामले में गुरुवार को राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए 2 साल की सजा सुनाई थी। राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद थे।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा से सदस्यता समाप्त किये जाने के संबंध में लोकसभा सचिवालय द्वारा 24 मार्च 2023 को जारी अधिसूचना संख्या 21/4(3)/टीओ (बी) इस प्रकार है। केरल के वायनाड संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा सदस्य श्री राहुल गांधी को सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा अपराधिक वाद सीसी/18712/2019 मामले में दोषी घोषित किये जाने के परिणामस्वरूप उन्हें दोषी करार दिये जाने की तिथि अर्थात 23 मार्च 2023 से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 (1)(ई) के अनुसार तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1991 की धारा 8 के दृष्टिगत लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य करार दिया जाता है। 

2013 में राहुल ने ही फाड़ा था अध्यादेश, पास हो जाता तो राहुल को मुश्किल ना होती
2013 में जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था कि सांसद/विधायक को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा मिलने पर उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म हो जाएगी। वो अगला चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे बड़ा प्रभाव लालू प्रसाद यादव पर पड़ सकता था, क्योंकि चारा घोटाले में फैसला आने वाला था।

लालू की पार्टी उस वक्त मनमोहन सरकार का हिस्सा थी। ऐसे में मनमोहन सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अध्यादेश लाई, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो जाए। 24 सितंबर 2013 को कांग्रेस सरकार ने अध्यादेश की खूबियां बताने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इसी बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने पहुंचकर कहा था, ये अध्यादेश बकवास है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए। उन्होंने अध्यादेश की कॉपी को फाड़ दिया था। इसके बाद ये अध्यादेश वापस ले लिया जाता है।

राहुल गांधी पर मानहानि के 4 और मुकदमे चल रहे
2014 में राहुल गांधी ने संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया था। एक संघ कार्यकर्ता ने राहुल पर IPC की धारा 499 और 500 के तहत मामला दर्ज कराया था। ये केस महाराष्ट्र के भिवंडी कोर्ट में चल रहा है।

2016 में राहुल गांधी के खिलाफ असम के गुवाहाटी में धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का केस दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता के मुताबिक, राहुल गांधी ने कहा था कि 16वीं सदी के असम के वैष्णव मठ बरपेटा सतरा में संघ सदस्यों ने उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया। इससे संघ की छवि को नुकसान पहुंचा है। ये मामला भी अभी कोर्ट में पेंडिंग है।

2018 में राहुल गांधी के खिलाफ झारखंड की राजधानी रांची में एक और केस दर्ज किया गया। ये केस रांची की सब-डिविजनल ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में चल रहा है। राहुल के खिलाफ IPC की धारा 499 और 500 के तहत 20 करोड़ रुपए मानहानि का केस दर्ज है। इसमें राहुल के उस बयान पर आपत्ति जताई गई है, जिसमें उन्होंने 'मोदी चोर है' कहा था।

2018 में ही राहुल गांधी पर महाराष्ट्र में एक और मानहानि का केस दर्ज हुआ। ये मामला मझगांव स्थित शिवड़ी कोर्ट में चल रहा है। IPC की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का केस दर्ज है। केस संघ के कार्यकर्ता ने दायर किया था। राहुल पर आरोप है कि उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या को BJP और संघ की विचारधारा से जोड़ा।

क्या कहता है जनप्रतिनिधि कानून?
1951 में जनप्रतिनिधि कानून आया था। इस कानून की धारा 8 में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो जिस दिन उसे दोषी ठहराया जाएगा, तब से लेकर अगले 6 साल तक वो चुनाव नहीं लड़ सकेगा। धारा 8(1) में उन अपराधों का जिक्र है जिसके तहत दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती है। इसके तहत, दो समुदायों के बीच घृणा बढ़ाना, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म जैसे अपराधों में दोषी ठहराए जाने पर चुनाव नहीं लड़ सकते. हालांकि, इसमें मानहानि का जिक्र नहीं है।

पिछले साल समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान की विधायकी चली गई थी, क्योंकि उन्हें हेट स्पीच के मामले में दोषी ठहराया गया था। इस कानून की धारा 8(3) में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है और अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है।

लिली थॉमस वाला फैसला, जिस कारण तुरंत गई सदस्यता
2005 में केरल के वकील लिली थॉमस और लोकप्रहरी नाम के एनजीओ के महासचिव एसएन शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी। उन्होंने दलील दी कि ये धारा दोषी सांसदों-विधायकों की सदस्यता को बचाती है, क्योंकि इसके तहत अगर ऊपरी अदालत में मामला लंबित है तो फिर उन्हें अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता।

इस याचिका में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) का भी हवाला दिया गया था। अनुच्छेद 102(1) में सांसद और 191(1) में विधानसभा या विधान परिषद को अयोग्य ठहराने का प्रावधान है। 10 जुलाई 2010 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने इस पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि केंद्र के पास धारा 8(4) को लागू करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी मौजूदा सांसद या विधायक को दोषी ठहराया जाता है तो जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(1), 8(2) और 8(3) के तहत वो अयोग्य हो जाएगा।

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