प्रशस्ति गीत लिखने-गाने वाले साहित्य के सबसे बड़े दुश्मन, Kanpur में असगर वजाहत से अमृत विचार ने की बातचीत, पढ़ें-

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Published By Nitesh Mishra
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प्रशस्ति गीत लिखने-गाने वाले साहित्य के सबसे बड़े दुश्मन।

प्रसिद्ध कहानीकार व नाटककार असगर वजाहत का मानना है कि प्रशस्ति गीत लिखने व गाने वाले साहित्य के सबसे बड़े दुश्मन हैं। गुरुवार को नगर प्रवास के दौरान अमृत विचार से विशेष बातचीत की।

कानपुर, [डॉ.संजीव मिश्र]। प्रसिद्ध कहानीकार व नाटककार असगर वजाहत का मानना है कि प्रशस्ति गीत लिखने व गाने वाले साहित्य के सबसे बड़े दुश्मन हैं। गुरुवार को नगर प्रवास के दौरान अमृत विचार से विशेष बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य को प्रशस्ति से अधिक स्वस्थ आलोचना की जरूरत है।

व्यास सम्मान सहित देश के प्रमुख साहित्य सम्मान पाए फतेहपुर में जन्मे और अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाए असगर वजाहत ने कहा प्रशस्ति गीत गाने के कारण अलग-अलग होते हैं। दरअसल अपनी समझ और व्यक्तिगत कारणों से ऐसा होता है। प्रशस्ति गीत लिखने व गाने वाले साहित्य का जबर्दस्त नुकसान कर रहे हैं। साहित्य वैज्ञानिक समझ देता है, किन्तु प्रशस्ति लेखन उसे हल्का कर देता है। साहित्य प्रशस्ति व निंदा से अलग चीज है। हमें निंदा व आलोचना का अंतर भी समझना होगा। 

गोडसे को भी हृदय परिवर्तन का अधिकार

असगर वजाहत के नाटक गोडसे@गांधी.कॉम पर आधारित फिल्म गांधी-गोडसे एक युद्ध को लेकर खासे विवाद हुए हैं। इस पर उन्होंने कहा कि जिन मुद्दों पर विवाद होने चाहिए थे, उन पर नहीं हुए। गोडसे मनुष्य है, उसमें भी बदलने की संभावना हो सकती है। गांधी स्वयं मानते थे कि हृदय परिवर्तन होता है। विरोध पर उनका मानना है कि स्वयं को गांधीवादी व मार्क्सवादी कहने वालों का चिंतन रूढ़ियों से बंधा है। उनकी सोच जड़ है। सारा संकट सीमित सोच वालों के कारण है। दरअसल लोग सिर्फ अच्छाई और बुराई के बीच ही सोचते हैं। सच्चाई यह है कि ब्लैक और व्हाइट के बीच ग्रे भी होता है। 

लोकप्रिय साहित्य के विरोधी छद्म बुद्धिजीवी

पिछले कुछ दिनों से गंभीर साहित्य व लोकप्रिय साहित्य के बीच चल रहे घमासान पर असगर वजाहत का मानना है कि किसी भी समाज के लिए लोकप्रिय साहित्य बहुत आवश्यक है। लोकप्रिय साहित्य के बिना आप अच्छे साहित्य की कल्पना नहीं कर सकते। लोकप्रिय साहित्य आगे बढ़ने की सीढ़ी है। उन्होंने साफ कहा कि लोकप्रिय साहित्य को स्वीकार न करने वाले और उनके लेखकों को मान्यता न देने वाले साहित्य को सीमित कर रहे हैं। इसका विरोध करने वाले छद्म बुद्धिजीवी हैं। 

सरल होना व लिखना बहुत कठिन काम

हिन्दी साहित्य में गंभीर के नाम पर कठिन लिखे जाने पर उनका मानना है कि जो सरल नहीं लिख पाते, वे कठिन लिखते हैं। दरअसल सरल होना व लिखना बहुत कठिन काम है। कविता हो या कहानी या उपन्यास, सरलता आसानी से नहीं आती। जहां तक साहित्य की स्वीकार्यता की बात है तो रचना की अर्थवत्ता समय निर्धारित करता है। लेखकों को समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। 

नए लोगों को स्थान देना पुरानों का कर्तव्य

साहित्य में नए लोगों की स्वीकार्यता पर असगर वजाहत का साफ कहना था कि नए लोगों को स्थान देना पुराने साहित्यकारों का कर्तव्य है। ऐसा न करने के कारण ही साहित्य समाज के दायरे से बाहर चला गया और तमाम पुराने लोगों ने साहित्य के दायरे को संकुचित कर दिया है। नए लोगों को खूब पढ़ना चाहिए, वहीं पुराने लोगों को नए लेखकों के साथ अच्छा व ईमानदार संवाद स्थापित करना चाहिए। साहित्य में भी गुरु-शिष्य परंपरा पर अमल किया जाना चाहिए।

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