Kashi Tamil Sangamam 2025 : जयंत चौधरी ने बताया दो प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं को जोड़ने वाला मंच

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Published By Anjali Singh
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वाराणसी।  राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) अध्यक्ष एवं केंद्रीय राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने गुरुवार को कहा कि काशी तमिल संगमम् 4.0 देश की दो प्राचीन एवं समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को जोड़ने का अनूठा मंच साबित हुआ है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आज कुशल पेशेवरों एवं शिल्पकारों के लिए आयोजित पांचवां शैक्षणिक सत्र संपन्न हुआ। 

तमिलनाडु से आए उद्योग जगत के प्रतिभागी, उद्यमी तथा पारंपरिक शिल्पकारों ने इस विशेष सत्र में उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जयंत चौधरी, केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय तथा राज्य मंत्री, शिक्षा मंत्रालय ने अपने संबोधन में काशी तमिल संगमम् की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि यह आयोजन देश की दो प्राचीन एवं समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को अनूठे ढंग से जोड़ने वाला महत्त्वपूर्ण मंच है। 

उन्होंने कहा " हम भले अलग-अलग भाषाएं बोलते हों और हमारे विचार भिन्न हों, लेकिन हमारा साझा मूल्य-तंत्र और संविधान हमें एक सूत्र में बांधे हुए है। भाषा कोई बाधा नहीं, बल्कि एक सेतु है जो तमिलनाडु और काशी को एक परिवार की तरह जोड़ती है।" उन्होने बनारस की आध्यात्मिकता और इसके आकर्षण का जिक्र करते हुए कहा " कौन बनारस आना नहीं चाहता। यह नगरी स्वयं लोगों को अपनी ओर खींच लेती है। 

बीएचयू को केवल एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि एक सशक्त सामाजिक संस्था है।" बदलते वैश्विक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए श्री चौधरी ने कहा कि आज परिवर्तन की गति वर्षों में नहीं, अपितु पलों में मापी जा रही है। ऐसे दौर में बीएचयू से यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स, नए शोध और पेटेंट जैसी उपलब्धियों की अपेक्षा करना स्वाभाविक है। अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी बहुभाषी, संवेदनशील और वैश्विक दृष्टिकोण वाली है। 

उन्होंने विद्यार्थियों को अंतरराष्ट्रीय भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। बीएचयू के कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने स्वागत संबोधन में तमिलनाडु से पधारे अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने कहा कि काशी और तमिलनाडु के बीच आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं ज्ञान-परंपरा पर आधारित संबंध सदियों पुराना है। शैव-वैष्णव परंपराएँ, मठ-पीठ, संत-विद्वान तथा तीर्थ-यात्राएँ इन दोनों क्षेत्रों को एक अदृश्य सेतु से जोड़ती रही हैं। 

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सोर्स : (वार्ता) 

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