सुधार की आवश्यकता

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
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देश में गरीबी, शिक्षा और लैंगिक असमानता जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को पहचानने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के सरकारी दावों के बीच भारत में प्रसव के दौरान प्रसूताओं, मृत शिशुओं के जन्म और नवजात शिशुओं की मौत के मामले सबसे ज्यादा पाए गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 10 देशों की सूची में भारत शीर्ष पर है। 2020-21 में 23 लाख नवजात की मौत हुई जिनमें भारत में मरने वालों की संख्या 7,88,000 रही। भारत के बाद सबसे अधिक निरपेक्ष मातृ और नवजात मृत्यु तथा मृत जन्म वाले देश नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, बांग्लादेश, चीन, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान एवं तंज़ानिया हैं।

रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2015 के बाद से जीवन बचाए जाने की दर में बेहतरी  के प्रयास ठहर गए है। संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने मातृत्व और नवजात शिशुओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में घटते निवेश को इसकी वजह बताया है। गौरतलब है सरकारी अस्पतालों में सबसे ज्यादा प्रसव कराया जाता है।

इसकी वजह प्रसूताओं को मिलने वाली नकद लाभ योजना है। जननी सुरक्षा योजना को 2005 में शुरू किया गया था। योजना के तहत गर्भवती महिला की डिलीवरी होने पर सीधे उनके बैंक खाते में छह हजार रुपये दिए जाते हैं। यह रकम जच्चा-बच्चा को पर्याप्त पोषण उपलब्ध कराने के हिसाब से दी जाती है। 

केंद्र सरकार ने 2011 में जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम योजना शुरू की। जो सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसव कराने वाली सभी गर्भवती महिलाओं को सिजेरियन सेक्शन सहित बिल्कुल मुफ्त और बिना किसी खर्च के प्रसव कराने का अधिकार देती है। वर्ष 2013 में इसे बीमार शिशुओं और प्रसव-पूर्व एवं प्रसवोत्तर जटिलताओं तक विस्तारित किया गया।

जन्म के 30 दिन बाद तक इलाज के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुंचने वाले सभी बीमार नवजातों को इसी पात्रता की श्रेणी में रखा गया है। सबसे बड़ा सवाल है कि सरकार की ओर से सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देने के लिए चलाईं जा रहीं इन योजनाओं व कार्यक्रमों के बावजूद  नवजात और प्रसूता की मृत्यु दर में कमी क्यों नहीं आई? इन कार्यक्रमों में सुधार की जरूरत है।

मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाकर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है। सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में विशेषकर मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए माताओं, परिवारों तथा समुदायों को लक्षित करने वाले अभिनव शैक्षिक कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है।