खतरे में मासूम बच्चों की जिंदगी: न परमिट न मानक पूरे, नौनिहालों के साथ अमेठी में हो रहा खिलवाड़
अमेठी/अमृत विचार। जिले के स्कूलों में लगी लगभग एक सैकड़ा वैन बच्चों के लिए खतरा बनी हुईं हैं। इन वाहनों के परमिट, फिटनेस, प्रदूषण और बीमा समेत मानक अधूरे हैं। परिवहन विभाग का धरपकड़ अभियान का असर भी इन स्कूली वाहनों पर नजर नहीं आ रहा है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों के निजी स्कूलों में प्राइवेट वाहनों की भरमार है। कई वाहन बिना फिटनेस के फर्राटा भर रहे हैैं। इन वाहनों में बच्चे पूरी तरह से असुरक्षित हैं।
एआरटीओ, पीटीओ ने ऐसे वाहनों पर शिकंजा कसने के लिए अभियान भी चलाया। स्कूल वाहनों को फिटनेस और मानक पूरा करने के निर्देश दिए थे। जिसका अभी तक असर नहीं दिखा है। विकास खंड बहादुरपुर में स्टेशन रोड़ जायस पर स्थित आदर्श इंटर कालेज में बस संख्या यूपी 33 एटी 5006 स्कूली बच्चों के लाने ले जाने के लिए स्कूल प्रबंधन ने लगा रखी है। लेकिन इस बस का बीमा 11 फरवरी 2017 को ही समाप्त हो गया है। इतना ही नहीं फिटनेस 24 जुलाई 2018 और परमिट 7 सितंबर 2021 को खत्म हो गया है।
अभिभावकों की जेब शिक्षा के नाम पर ढीली करने वाले स्कूल संचालक स्कूली वाहनों के कागजात तक नहीं सही करा पा रहे है। यही हाल है कासिमपुर के निकट पूरे तोमड में स्थित आशाराम पब्लिक स्कूल का है जिसमें मैजिक संख्या यूपी 36 टी 3669 बच्चों को लाती ले जाती है। लेकिन इसका भी बीमा 8 नवंबर 2022 को समाप्त हो गया है। इन स्कूलों में बिना बीमा, फिटनेस व परमिट के नौनिहालों के जान के दुश्मन बन सड़कों पर फर्राटा भर रहे हैं।
ये है स्कूली वैन के मानक
स्कूल वाहन के परमिट दो तरह के होते हैं। स्कूल प्रबंधन की वैन और निजी वैन का स्कूल से अनुबंध होने का अलग-अलग परमिट दिया जाता है। स्कूल प्रबंधन वाली वैन पूरी तरह से पीले रंग की होती है, जबकि अनुबंधित वैन के चारों तरफ पीली पट्टी होती है। स्कूल की वैन सात सीटर होती है। वैन की खिड़कियों के पास रॉड लगी होनी चाहिए, जिससे बच्चे बाहर मुंह न निकाल सकें। वैन में स्कूल का नाम, पता, मोबाइल नंबर लिखा होना जरूरी होता है। जिससे किसी भी तरह की जानकारी प्रबंधन को दी जा सके। बच्चों के बैग रखने के कैरियर और स्टैंड होना चाहिए।
फीस बढ़ाई, फिर भी मानक अधूरे
कोरोना काल के दौरान सामाजिक दूरी का पालन करने के निर्देश मिलते ही स्कूल वैन वालों ने एक किलोमीटर से तीन किलोमीटर की दूरी का किराया 500 रुपये से बढ़ाकर आठ सौ रुपये कर दिया है। जबकि पांच किलो मीटर से आठ किलोमीटर की दूरी का किराया आठ सौ के स्थान पर एक हजार से 12 सौ रुपये किया गया, लेकिन मानक आज भी पूरा नहीं कर सके। ऐसे वाहन बच्चों को ठूंस कर ले जाते हैं। निजी वैन से बच्चों को स्कूल भेजने में खतरा रहता है, लेकिन संसाधनों का अभाव होने के कारण यह मजबूरी बन गया है। इसी का वैन संचालक फायदा भी उठाते है। मनमानी फीस लेने के बाद भी मानक पूरा नहीं कर रहे हैं। प्रशासन सख्ती बरते तभी कुछ हो सकता है।
चिलबिला की घटना से नहीं ले रहे सबक
पिछले सप्ताह चिलबिला में स्थित एक स्कूल में बच्चों से भरी वैन में चलते समय शार्ट सर्किट से इंजन में आग लग गई थी। जब तक बच्चे वैन से उतरते तब तक आधा दर्जन से अधिक बच्चे झुलस गए है। जिसमें दो बच्चों की हालत गंभीर होने के कारण कई दिनों तक अस्पताल में इलाज चला था।
