हाईकोर्ट ने धनशोधन मामले में मनीष सिसोदिया की अंतरिम जमानत अर्जी ठुकराई

हाईकोर्ट ने धनशोधन मामले में मनीष सिसोदिया की अंतरिम जमानत अर्जी ठुकराई

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धन शोधन के एक मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मनीष सिसोदिया को उनके खिलाफ “बेहद गंभीर” आरोपों और “साक्ष्यों से छेड़छाड़” की आशंका को देखते हुए अंतरिम जमानत देने से सोमवार को इनकार कर दिया।

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न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने हालांकि मनीष सिसोदिया को हिरासत में रहने के दौरान एक दिन सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे के बीच अपनी बीमार पत्नी से मिलने की सशर्त अनुमति दे दी। अदालत ने सिसोदिया को निर्देश दिया कि इस दौरान वह मीडिया से बात नहीं करेंगे। न्यायाधीश ने कहा कि यह देखते हुए कि मामला “बेहद गंभीर आरोपों” से संबंधित है और अगर दिल्ली की आप सरकार में कई पदों पर रहे सिसोदिया को रिहा किया जाता है, तो सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका है।

न्यायाधीश ने कहा, “अदालत को छह सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत पर याचिकाकर्ता को रिहा करने के लिए खुद को राजी करना बहुत मुश्किल लगता है।” अदालत ने कहा, “हालांकि, इस अदालत को साथ ही यह भी लगता है कि याचिकाकर्ता को अपनी पत्नी को देखने और मिलने का अवसर मिलना चाहिए।

इसलिए एक दिन के लिए सीमा सिसोदिया की सुविधा के अनुसार, याचिकाकर्ता को हिरासत में सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक अपने आवास/अस्पताल (यदि वह अस्पताल में भर्ती हैं) में ले जाया जाए।” आबकारी नीति की जांच के सिलसिले में 26 फरवरी को सीबीआई के मामले में सिसोदिया को गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

बाद में उन्हें नौ मार्च को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में न्यायिक हिरासत में हैं। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि अपनी यात्रा के दौरान सिसोदिया मीडिया से बातचीत नहीं करेंगे, अपनी पत्नी या परिवार के सदस्यों के अलावा अन्य लोगों से नहीं मिलेंगे और किसी भी फोन या इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

दिल्ली पुलिस के आयुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनके आवास या अस्पताल, जहां उन्हें ले जाया जाए, उसके आसपास कोई मीडिया का जमावड़ा नहीं होना चाहिए। पूर्व में अदालत ने एलएनजेपी अस्पताल से सिसोदिया की पत्नी के बारे में एक रिपोर्ट मांगी थी। अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि उनकी जांच यहां एम्स के चिकित्सकों के एक बोर्ड द्वारा की जाए। इसने निर्देश दिया कि उन्हें सबसे अच्छा उपचार दिया जाना चाहिए।

अदालत ने एलएनजेपी अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि सिसोदिया की पत्नी की हालत स्थिर है और उनकी करीबी निगरानी की जरूरत है। उसने कहा, “इस अदालत ने उस गंभीर बीमारी पर भी ध्यान दिया है, जिससे याचिकाकर्ता की पत्नी सीमा सिसोदिया पिछले लगभग दो दशकों से पीड़ित हैं। यह अदालत निर्देश देगी और उम्मीद करेगी कि सीमा सिसोदिया को सर्वोत्तम चिकित्सा प्रदान की जानी चाहिए।”

उसने कहा, “हालांकि, यह रोगी और उसके परिवार के सदस्यों की पसंद है कि उपचार कहां से लिया जाना है, लेकिन न्याय प्रशासन के संरक्षक के रूप में यह अदालत सुझाव देगी कि सीमा सिसोदिया की जांच अग्रणी चिकित्सा संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में चिकित्सा अधीक्षक द्वारा गठित चिकित्सकों के बोर्ड द्वारा की जा सकती है।” अदालत ने कहा, “मौजूदा मामले में आरोप अत्यंत गंभीर प्रकृति के हैं।

हालांकि, यह अदालत खुद को आरोपों की गंभीरता से प्रभावित या भयभीत होने की अनुमति नहीं देती है, साथ ही, यह अदालत याचिकाकर्ता द्वारा वर्तमान विवाद और मामले की प्रकृति में रखी गई स्थिति को भी नहीं भूल सकती है।” अदालत ने जमानत याचिका पर फैसला करते समय “अन्य बातों के साथ- साथ इस बात का भी ध्यान रखा कि गवाहों से छेड़छाड़/प्रभावित करने की आशंका” रहेगी, अगर याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाता है।

अदालत ने कहा कि तथ्यों व परिस्थितियों को संपूर्णता में देखने के बाद अदालत याचिकाकर्ता को छह हफ्तों की जमानत देने को बेहद मुश्किल पाती है। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने छह हफ्ते के लिये अंतरिम जमानत का अनुरोध करते हुए कहा था कि उनकी बीमार पत्नी की देखभाल करने वाला उनके अलावा कोई और नहीं है। मामले में नियमित जमानत के लिए सिसोदिया की याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।

इस मामले में नौ मार्च को गिरफ्तार किए गए सिसोदिया अभी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की न्यायिक हिरासत में हैं। ईडी ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका जाहिर करते हुए अंतरिम जमानत याचिका का विरोध किया है। ईडी के वकील ने दावा किया कि सिसोदिया की पत्नी की चिकित्सीय स्थिति पिछले 20 साल से ऐसी ही है।

दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर 2021 को नयी आबकारी नीति लागू की थी, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सितंबर 2022 के अंत में इसे वापस ले लिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने आबकारी नीति से जुड़े उस मामले में 30 मई को सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसकी जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) कर रहा है। अदालत ने कहा था कि उनके खिलाफ लगे आरोप बहुत गंभीर प्रकृति के हैं। 

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