आपातकाल : वह दिन काले थे और रातें तो घनघोर काली
इमरजेंसी: जेल में इंदिरा गांधी के विरोध में राजनीतिक चर्चाएं करते थे, तत्कालीन विधायक और मौजूदा सांसद डॉ.बर्क गए थे जेल
लोकतंत्र सेनानी बाबर खां
आशुतोष मिश्र, मुरादाबाद, अमृत विचार। कड़कती आवाज, दरम्याना चेहरा और नागरिक अधिकारों के पक्ष में खम के साथ खड़े होने वाले इस आदमी का नाम है बाबर खां। राजनीति में चौधरी चरण सिंह के कृपा पात्र रहे हैं। आपातकाल (इमरजेंसी) के खिलाफ देश को एकजुट करने वाले जय प्रकाश नारायण के अनुयायी हैं। देश और क्षेत्र की राजनीति ने करवट ली तो सोशलिस्ट से समाजवादी हो गए। समाजवादी लड़ाका बाबर खां मीसा बंदी हैं। 18 माह के बाद जेल से रिहा हुए, लेकिन राजनीति में कोई भी लाभ का पद नहीं लिया। इमरजेंसी की चर्चा आते ही इनका चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है।
इतिहास के पन्नों में 25 जून 1975 का वह दौर अपने अक्षरों में लिखा है। आपातकाल के दौरान यहां भी तमाम गिरफ्तारियां हुईं। पुलिस ऐसे लोगों को खोजने लगी जो इंदिरा गांधी की नीति और नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाते थे। संभल के सांसद डॉ. शफीक-उर रहमान बर्क, अमरोहा के तत्कालीन विधायक एवं विधान परिषद सदस्य मास्टर हरगोविंद सिंह, चौधरी कांशीराम, इकबाल जाफरी, मुस्तफिजुर हसन, ठाकुरद्वारा के अहमद हसन, रामपाल सिंह, आरएसएस से जुड़े लक्ष्मण प्रसाद, प्रेमशंकर शर्मा, रमाशंकर कौशिक, हाजी नन्हे जैसे अनगिनत लोग अपने ठिकानों से गिरफ्तार कर लिए गए। शहर के लाकड़ी वालान निवासी अनवारूल हुसैन इसी कड़ी में शामिल हैं।
आपातकाल की वर्षगांठ पर अमृत विचार से बातचीत में लोकतंत्र सेनानी बाबर खां जेल की बातों को विस्तार से रखते हैं। इमरजेंसी का नाम सुनते ही बाबर के चेहरे का रंग बदल जाता है। आंखें लाल हो जाती हैं, उनकी आवाज कड़क हो जाती है। कहते हैं कि अब तो अधिकतर मीसा और डीआईआर बंदी इस दुनिया से चल बसे। मगर वह उन दिनों की काली रातों की चर्चा नहीं भूलते। शहर के तबेला मोहल्ला निवासी बाबर खान कहते हैं कि बाद में 17-18 महीने का समय कैसे गुजर गया? पता ही नहीं चला। कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सीपीएम और सोशलिस्ट पार्टी के लोग इंदिरा गांधी की तानाशाही का विरोध करते थे। नारे लगाते थे। इसीलिए जेल की यात्राएं झेलनी पड़ीं।
बताते हैं कि जेल में सभी आपातकाल के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे। इंदिरा गांधी की नाफरमानी को लेकर तकरीर करते थे। प्रशासन की ओर से जेल की खुफिया रिपोर्ट इंदिरा गांधी तक पहुंचाई जाती थीं। मुरादाबाद जेल में बंद हाजी नन्हे को नैनी (प्रयागराज) जेल भेज दिया गया। रमाशंकर कौशिश को भी दूसरी जेल में भेज दिया गया, लेकिन हम सभी सरकार डरे नहीं। अपनी बैठकों में सोवियत संघ की चर्चा करते थे और इंदिरा गांधी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते थे। ऐसी तमाम चर्चाओं के बीच बाबर कहते हैं कि हमारी रगों में संघर्ष करना लिखा है। लोकतंत्र हमारी रूह है।
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