अंडमान के मुख्य सचिव को निलंबित करने व उपराज्यपाल पर जुर्माना लगाने के उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक 

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Published By Shobhit Singh
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने श्रमिकों को लाभ जारी करने के पूर्व के आदेश पर अमल न करने को लेकर अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव केशव चंद्रा को निलंबित करने और उपराज्यपाल डी. के. जोशी पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाने संबंधी कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर शुक्रवार को रोक लगा दी। 

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मुख्य सचिव एवं उपराज्यपाल की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की दलीलों पर गौर किया और उच्च न्यायालय की पोर्ट ब्लेयर पीठ के संबंधित आदेश पर रोक लगा दी। 

पीठ ने अटॉर्नी जनरल से मामले के बारे में विस्तार से पूछा। वेंकटरमणी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को निलंबित कर दिया है। आगे उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को वेतन के भुगतान के संदर्भ में दो परिपत्र थे। कामगारों को नियमित करने को लेकर एक अलग पहलू था। एकल पीठ ने कहा कि दोनों आदेशों को एकसाथ पढ़ा जाना चाहिए। 

आगे पीठ ने कहा कि अधिकारी ने निश्चित तौर पर उच्च न्यायालय को नाराज किया होगा, तभी इस तरह का आदेश जारी किया गया होगा। पीठ ने कहा कि हम इन आदेशों पर रोक लगाते हैं। आपने (याचिकाकर्ताओं ने) न्यायाधीशों को वास्तव में गुस्सा दिलाया होगा। हम इस मामले में अगले शुक्रवार को सुनवाई करेंगे।

उच्च न्यायालय की पोर्ट ब्लेयर पीठ ने श्रमिकों को लाभ जारी करने के संबंध में उसके पूर्व के आदेश का अनुपालन नहीं करने पर अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव केशव चंद्रा को बृहस्पतिवार को निलंबित कर दिया था, जबकि उपराज्यपाल डी.के. जोशी पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसका भुगतान उन्हें अपने कोष से करना था। 

पिछले साल 19 दिसंबर को पारित आदेश में अंडमान प्रशासन द्वारा नियोजित लगभग 4,000 दैनिक मजदूरों (डीआरएम) को उच्च वेतन और डीए (महंगाई भत्ता) प्रदान करने की बात कही गई थी। मुख्य सचिव को निलंबित करने और उपराज्यपाल पर जुर्माना लगाने का अदालत का आदेश अंडमान सार्वजनिक निर्माण विभाग मजदूर संघ की याचिका पर आया था। 

मजूदर संघ की ओर से पेश वकील गोपाल बिन्नु कुमार ने उच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए बृहस्पतिवार को कहा था कि उपराज्यपाल एवं मुख्य सचिव के नेतृत्व वाले प्रशासन को अदालत के आदेश पर अमल न करने का दोषी पाया गया था। संबंधित आदेश 2017 से लंबित है। उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई अब 17 अगस्त को प्रस्तावित है।

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