कानपुर : मुख्यमंत्री कानपुर से कर सकते हैं सुपरफूड क्रांति की शुरुआत

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Published By Virendra Pandey
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महेश शर्मा, अमृत विचार, कानपुर। उत्तर प्रदेश के होटलों में अब आपको मेन्यू कार्ड में देसी सुपरफूड यानी मोटे अनाज से बने खाद्य पदार्थ का विवरण मिलेगा। यही नहीं घरों पर पकवान और खाना-पानी सप्लाई करने वाली कंपनियों के डिलीवरी ब्वॉय आपकी फरमाइश पर आपके द्वार आपकी मनपसंद का पैक्ड सुपरफूड व्यंजन लिए खड़े मिलेंगे। खान-पान में सुपरफूड को उतारने के लिए इस व्यापक परिवर्तन की शुरुआत कानपुर से होगी। सुपरफूड का सुपरमेला आयोजित किया जाएगा जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आएंगे। यह पहल होटल व्यावसाइयों की मदद से भाजपा के कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के अध्यक्ष प्रकाश पाल ने की है। पाल ने बताया कि बुधवार की शाम को जिलाधिकारी के कैम्प कार्यालय में इस संबंध में एक महत्वपूर्ण बैठक होगी जिसमें होटल व्यवसायी भी होंगे। इससे पूर्व भी एक बड़े होटल में बैठक करके रूपरेखा तैयार कर ली गयी है। 

प्रकाश पाल
भाजपा के कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के अध्यक्ष प्रकाश पाल

 

पाल का कहना है कि सप्लाई चेन वाली कंपनियां भी अब आपकी मांग पर सुपरफूड सप्लाई कर सकेंगी। प्रकाश पाल ने बताया कि होटल व्यावसाइयों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में सुपरफूड पर एक बृहद कार्यक्रम आयोजित कर की इच्छा व्यक्त की है जिसमें प्रत्येक तरह के मोटे अनाज के व्यंजन होंगे। हल्के-फुल्के पकवानों के भी स्टाल होंगे। उनका कहना है कि ऐसे कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को आमंत्रित करके लाने का प्रयास उनके स्तर पर किया जाएगा। इसे यूपी में वाया कानपुर देसी सुपरफूड की वापसी के रूप में देखा जा रहा है। सदियों पुराने ज्वार, बाजरा, रागी आदि फिर काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। तरह-तरह की बीमारियों से जकड़ता इंसान अब फिर सुपऱफूड की तरफ लौट रहा है।

सरकारी सूचना बताती है कि साठ के दशक में ग्रीन रेवेल्युशन (हरितक्रांति) से पहले देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन मोटा अनाज यानी यही देसी सुपरफूड की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी। लेकिन गेंहूं और धान को इस क्रांति में प्रमुखता देने से मोटे अनाज काफी पिछड़ गए और हिस्सेदारी घटकर 20 प्रतिशत ही रह गयी। देश 2018 में मोटा अनाज वर्ष मना चुका है लेकिन संयुक्त राष्ट्र 2023 मिलेट ईयर के रूप में मना रहा है। खाद्य सुरक्षा अभियान में देश के 14 राज्यों में मोटा अनाज शामिल कर लिया गया। राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ ही उत्तर प्रदेश भी मोटा अनाज उत्पादक राज्य है।

आखिर आप क्यों खाएं मोटा अनाज

ग्लूटेन फ्री मोटा अनाज खाने से शरीर में ग्लूकोज, चावल आदि की अपेक्षा खून में धीमी गति से आता है। थोड़ी मात्रा ही तृप्ति का एहसास करा देती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च के अनुसार मोटा अनाज में माइक्रो-न्यूट्रेंट्स काफी मात्रा में होते हैं। मधुमेह (डायबिटीज), हाइपरटेंशन और दिल की बीमारियों से बचा जा सकता है। यह पोषक अनाज खिचड़ी, रोटी, पराठे, समोसे, केक, चॉकलेट, इडली, डोसा, ढोकला आदि दर्जनों व्यंजन बनाए जा सकते हैं। असहज गंध या स्वाद में कड़वापन आए तो मत खाएं। यानी एफएसएसएआई एगमार्क देखकर ही खरीदें।

कृषक उगाएं तो फायदा ही फायदा

मोटे अनाजों को ज्यादा सिंचाई खाद आदि की जरूरत नहीं होती और तो और ये सूखे इलाकों में भी आसानी से उगाये जा सकते हैं। यही नहीं इनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी गेहूं, चावल से ज्यादा है। मसलन 2022 में ज्वार हाईब्रिड का न्यूनतम समर्थन मूल्य रु.2,970 प्रति क्विंटल है। मोटे अनाजों पर कीट का असर नहीं होता और दो इंच से ज्यादा गहरायी पर इनकी बुआई नहीं होती।

ये है मोटा अनाज

रागी/मंडुआ दक्षिण भारत का अनाज है। बाजरा (मैग्नीशियम, कॉपरजिंक से भरपूर)। मक्का के साथ उगाइये चना, बेर्रा। कंगानी/काकुम, कोदों, सावां और कुटकी। हां, रामदाना और कुट्टू अनाज होकर अनाज की श्रेणी में नहीं आता। वनस्पतिशास्त्र में इन्हें अनाज का दर्जा हासिल नहीं है। लेकिन अब सरकार ने इन्हें मिलेट यानी मोटे अनाज में शामिल कर लिया है।

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