सभी मराठाओं को दी जाए OBC श्रेणी में कुनबी के रूप में मान्यता 

सभी मराठाओं को दी जाए OBC श्रेणी में कुनबी के रूप में मान्यता 

जालना। मराठा आरक्षण का समर्थन करने वाले कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि निजाम युग के दौरान समुदाय के सदस्यों को कुनबी के तौर पर मान्यता दी गई थी, इसलिए सभी मराठाओं को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत कुनबी के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।

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आरक्षण समर्थक एक कार्यकर्ता ने दावा किया, "मराठा और कुनबी स्वतंत्र रूप से एक-दूसरे के साथ भोजन करते थे और आपस में विवाह करते थे’’, जिससे उनके बीच की दूरियां कम हो गई। उन्होंने कहा, यह सांस्कृतिक सम्मिलन इस तर्क को और मजबूत करता है कि मराठा और कुनबी सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से घनिष्ठ संबंध रखते थे। कृषि प्रधान कुनबी समुदाय को पहले से ही अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण का लाभ मिल रहा है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्य के सभी जिलाधिकारी को पुराने रिकार्ड खोजने के लिए जिलाधिकारी कार्यालय के दस कर्मियों को तैनात करने के लिए कहा जाएगा, जिसके आधार पर पात्र मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र दिए जा सकें। बृहस्पतिवार को नौ दिनों के बाद अपना अनिश्चिकालीन अनशन खत्म करने वाले मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे की मांगों में से एक मांग यह भी है कि उन्हें कुनबी (मराठाओं को) जाति प्रमाण दिया जाए।

जरांगे ने दावा किया कि मराठवाड़ा क्षेत्र से लगभग 13,700 दस्तावेज एकत्र कर इसे सेवानिवृत्त न्यायाधीश संदीप शिंदे के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए हैं। शिंदे को मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया तय करने के लिए राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया है। मराठा क्रांति मोर्चा के समन्वयक डॉ. संजय लाखे पाटिल ने शनिवार को कहा कि मराठा समुदाय के सदस्य ऐतिहासिक रूप से खेती से जुड़े रहे हैं, और दावा किया कि उन्हें कुनबी कहा जाता था।

उन्होंने कहा, इसके बावजूद, महाराष्ट्र के गठन के बाद मराठा खुद को मराठवाड़ा क्षेत्र में एक श्रेष्ठ जाति का मानते थे। पाटिल ने दावा किया, ऐतिहासिक दस्तावेजों और रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि मराठों की पहचान मूल रूप से कुनबी के रूप में की गई थी और वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े थे। उन्होंने कहा कि विदर्भ और पश्चिमी महाराष्ट्र के मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी माना जाता है और वे ओबीसी श्रेणी के तहत लाभ लेते हैं।

स्थानीय एनजीओ मराठा फाउंडेशन के अध्यक्ष अविनाश कव्हाले ने दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा किया कि 1920 में, निजाम प्रशासन ने 'निज़ाम के प्रभुत्व की जातियां और जनजातियां' शीर्षक से एक व्यापक सर्वेक्षण किया था, जिसने मराठा समुदाय को दक्कन की भूमिधारक और खेती करने वाली जाति के रूप में पहचाना। उन्होंने दावा किया कि मराठा समुदाय दो महत्वपूर्ण जनजातियों का मिश्रण था, जिनका प्रतिनिधित्व मराठा और कुनबी करते थे।

उन्होंने कहा, मराठों को 96 'कुल' (कुलों) में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक का कई उपनामों के साथ उप-विभाजन किया गया था। कव्हाले ने कहा, ''मराठा और कुनबी स्वतंत्र रूप से एक-दूसरे के साथ भोजन करते थे और आपस में विवाह करते थे’’, जिससे उनके बीच की दूरियां कम हो गई थी।

कव्हाले ने पी.वी. केट द्वारा लिखित पुस्तक 'मराठवाड़ा अंडर द निजाम्स 1724-1948' का भी उल्लेख किया और कहा कि यह मराठवाड़ा क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। 

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