सूक्ष्म प्लास्टिक कणों की पार्किंसन और डिमेंशिया में हो सकती है भूमिका : अध्ययन 

Amrit Vichar Network
Published By Ashpreet
On

नई दिल्ली। मस्तिष्क में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एक विशेष प्रोटीन के नैनोप्लास्टिक से संपर्क में आने पर ऐसे बदलाव होते हैं जो पार्किंसन रोग और डिमेंशिया का कारण हो सकते हैं। 

एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है। ‘साइंस एडवांसेस’ नाम के जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन ने मानव जीवविज्ञान पर पर्यावरण कारकों के समय के साथ पड़ने वाले प्रभाव समेत अनुसंधान का एक नया रास्ता खोल दिया है। अमेरिका के ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रोफेसर एंड्रयू वेस्ट के मुताबिक, ''पार्किंसन रोग को विश्व में सबसे तेजी से बढ़ता मस्तिष्क संबंधी विकार कहा जा रहा है।

 विभिन्न प्रकार के डेटा से यह पता चलता है कि इस रोग में पर्यावरण संबंधी कारकों की अहम भूमिका हो सकती है। हालांकि इनकी व्यापक रूप से पहचान नहीं हो सकी है। '' हाल के अध्ययन में पाया गया है कि प्लास्टिक का ठीक तरह से निस्तारण नहीं होने पर यह बहुत ही छोटे टुकड़ों में टूट जाता है और पानी तथा खानपान की वस्तुओं में जमा हो जाता है।

यह वजह है कि यह ज्यादातर वयस्क लोगों के रक्त में यह पाया जाता है। वेस्ट कहते हैं, ''हमारा अध्ययन बताता है कि पर्यावरण में प्लास्टिक के सूक्ष्म और बेहद सूक्ष्म कण पार्किंसन रोग और उसके बढ़ने में नई चुनौती पेश करते हैं।

ये भी पढ़ें- मध्य प्रदेश में तीन बच्चों के साथ बांध में कूदा पिता, दो बच्चों की मौत 

संबंधित समाचार