हल्द्वानी: पर्वतीय अस्मिता व संस्कृति को बचाने वाला हो भू-कानून

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Published By Bhupesh Kanaujia
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हल्द्वानी, अमृत विचार। राज्य में एक बार फिर सशक्त भू-कानून  की मांग जोर पकड़ने लगी है। भू-कानून को लेकर राजधानी देहरादून में हुई महारैली के बाद कुमाऊं व गढ़वाल के जिलों में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। विपक्ष इसे मुद्दा बनाने में जुटा है तो सत्ता विरोधी संगठन भी इसे तूल दे रहे हैं। फिलहाल भू-कानून ने युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार की बेचैनी बढ़ा दी है।

भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने बीती 24 दिसंबर को देहरादून में सशक्त भू कानून को लेकर महारैली निकाली थी। इसमें आम उत्तराखंडी से लेकर 100 से अधिक संगठनों के सैकड़ों प्रतिनिधियों व बच्चे से बुजुर्ग तक ने हिस्सा लिया था। इधर, महारैली के बाद समूचे प्रदेश में सशक्त भू-कानून की मांग तेज हो गई है।  प्रदेश वासियों का कहना है कि उत्तराखंड एक हिमालयी राज्य है।

अन्य प्रदेशों के गैर पर्वतीय यहां भारी तादाद में पर्वतीय क्षेत्रों में जमीनों की खरीद कर रहे हैं। ऐसे में प्रदेश के संसाधनों पर गैर पर्वतीय व बाहरी लोग हावी होते जा रहे हैं। इसका प्रभाव सिर्फ प्राकृतिक संसाधन नहीं वरन यहां की संस्कृति, परंपरा, अस्मिता पर भी पड़ रहा है। उत्तराखंड के ही मूल नागरिक भूमिहीन होते जा रहे हैं। ऐसे में अन्य प्रदेशों के बाहरी लोगों के पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि खरीद पर रोक  लगाने की मांग तेज हो गई है। इसको लेकर राज्य सरकार ने एक समिति बना दी है। हालांकि भू-कानून की मांग करने वाले इस समिति की सिफारिशों से सहमत नहीं हैं। 

भूमि का ब्योरा सार्वजनिक किया जाए
आंदोलनकारियों ने राज्य गठन के बाद से वर्तमान तक सरकार की ओर से विभिन्न संस्थाओं/व्यक्तियों को दी भूमि का ब्योरा और कंपनियों को दान में दी गई भूमि का ब्योरा भी सार्वजनिक करने की मांग की है।

भू कानून को लेकर भूकानून समन्वय संघर्ष समिति की ये हैं प्रमुख मांगें  
1.ठोस भू कानून और शहरी में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो
2.ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि बिक्री खासकर गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे
3.पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर रोक लगे
4.पर्वतीय क्षेत्रों में उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण में मूल निवासियों का हिस्सा हो
5. मूल निवास प्रमाण पत्र जारी किए जाएं, इसकी कट ऑफ डेट 26 जनवरी 1950 रखी जाए

भू कानून पर राजनैतिक दलों के प्रतनिधियों की राय

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बिजनेसमैन सीएम हैं। वह अपना फायदा और घाटा देखकर फैसले लेते हैं उन्हें जनता से कोई लेनादेना नहीं है। इस सरकार में धड़ल्ले से जमीनों की खरीद फरोख्त हो रही है। मूल निवासियों के हितों को ताक पर रख दिया गया है। भू कानून सरकार और उद्योग घरानों नहीं यहां के मूल निवासियों की भावना के अनुरूप होना चाहिए।
- राहुल छिमवाल, जिलाध्यक्ष कांग्रेस


भू कानून को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी संजीदा हैं। एक सशक्त  भूकानून जो प्रदेश वासियों के हित का होगा बनाया जाएगा। उत्तराखंड के हित में जो भी होगा, सीएम धामी वही फैसला लेंगे। भू कानून के लिए एक समिति का गठन किया गया है जो जल्द ही जनता के सुझाव जानेगी। 
-प्रताप बिष्ट, जिलाध्यक्ष भाजपा


एक मजबूत भू-कानून लागू करना, मूल-निवास और गैरसैंण राजधानी उक्रांद की आधारशिला है, जिसके लिए राज्य आंदोलन हुआ था और उत्तराखंड की परिकल्पना की गई थी। उत्तराखंडियों के मूल निवास अधिकार के लिए उत्तराखंड क्रांति दल लड़ता रहेगा।
-सुशील उनियाल, केंद्रीय महामंत्री उत्तराखंड क्रांति दल


25 सालों से लोगों के दिलों में जो आक्रोश था, वह देहरादून की सड़कों पर दिख गया। संविधान के अनुच्छेद-371 में संस्कृति का संरक्षण मिलता है। यह संरक्षण उत्तराखंड के लोगों को नहीं मिल रहा है। इसका संरक्षण करना सरकार का कर्तव्य है लेकिन सरकार ऐसी नीतियां बनाती है, जिससे माफियाओं को संरक्षण मिलता है। गांवों में बेनाम भूमि व वन पंचायत को जनता को सौंपा जाना चाहिए।
- पीसी तिवारी, अध्यक्ष, उपपा

सरकार को पहाड़ से पलायन रोकने की चिंता करनी चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार नहीं होने से पहाड़ खाली हो रहे हैं। आर्थिक मजबूरी में लोग अपनी जमीनों को बेच रहे हैं। अगर सरकार सभी बुनियादी जरूरतें पूरी करती है तो पहाड़ से पलायन नहीं होगा और अपने आप भूमि बच जाएगी और भू-कानून की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

- अब्दुल मतीन सिद्दीकी, प्रदेश प्रभारी, सपा

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