प्रयागराज: मनकामेश्वर की महिमा का स्वयं प्रभु श्रीराम ने किया था गुणगान, इसी अक्षयवट के नीचे किया था विश्राम
प्रयागराज। गोस्वामी तुलसीदास की रचित इस दोहे में प्रयागराज की महिमा का बखान किया गया है। उन्होंने कहा है कि को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ॥ अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा। अर्थात पापों के समूह रूपी हाथी के मारने के लिए सिंह रूपी प्रयागराज का प्रभाव (महत्व-माहात्म्य) कौन कह सकता है। ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र रघुकुल श्रेष्ठ श्री रामजी ने भी सुख पाया।
वनवास के समय प्रयागराज में मनकामेश्वर की महिमा का गान स्वयं प्रभु श्री राम कर चुके हैं। पुराणों में उल्लेख है किया कि वन गमन के दौरान प्रभु श्रीराम अक्षयवट से पहले मनकामेश्वर में रुके थे। जहां सीता माता के साथ भगवान राम ने मनकामेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की। इसको लेकर महाकुंभ की तैयारी में इस मनकामेश्वर तीर्थ को संवारने की शासन की योजना है।
प्रभु श्रीराम द्वादश माधव की नगरी में विराजमान मनकामेश्वर महादेव की स्वयं आराधना कर चुके हैं। यमुना तट पर मनकामेश्वर में वनगमन के समय श्री राम स्वयं आये थे। मान्यता है कि संगमनगरी में मनकामेश्वर के दर्शन मात्र से मन की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौराणिक मान्यता है कि यज्ञभूमि पर कामदेव को भस्म करने के बाद भगवान शिव ने यमुना तट पर प्रवास किया। तभी भगवान शिव यहां यमुना तट पर मनकामेश्वर के रूप में महादेव विराजमान हैं। स्कंद पुराण और प्रयाग महात्म्य में भी मनकामेश्वर महादेव का उल्लेख किया गया है।
पुराणों के अनुसार अक्षयवट के पश्चिम में पिशाच मोचन मंदिर के पास यह मनकामेश्वर तीर्थ बना हुआ है। यहां मंदिर में कामेश्वरी के रूप में मां पार्वती, भैरव, यक्ष और किन्नर भी विराजमान है। इन देवताओं और तीर्थों के दर्शन करने के बाद प्रभु श्रीराम वन गमन के लिए आगे बढ़े थे।
त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम को वनवास मिला। उसके बाद वह अयोध्या से वह माता सीता और लक्ष्मण के साथ संगमनगरी में अक्षयवट के नीचे विश्राम किया था । यहां से प्रस्थान से पहले उन्होंने मनकामेश्वर की पूजा और अर्चना की थी।
श्रीधरानंद ब्रह्मचारी, मंदिर व्यवस्थापक
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