बरेली: विवादित ढांचा गिराने के बाद जल उठा था शहर, जामा मस्जिद की दीवार पर आज भी गोलियों के निशान

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Published By Vishal Singh
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विकास यादव/ बरेली, अमृत विचार। अयोध्या में 6 जनवरी 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचे को ढहा दिया था। जिसके बाद यह सूचना चारों ओर आग की तरह फैल गई। मस्जिद ढहाने के बाद दूसरे समुदाय ने एकत्र होकर बवाल शुरू कर दिया। जिसके बाद इस चिंगारी ने धीरे-धीरे आग का रूप ले लिया और शहर के शहर साम्प्रदायिक दंगे में जलने लगे। 

इस दौरान पुलिस को कड़ा बल प्रयोग करना पड़ा। यहां तक की पुलिस को गोलियां तक चलानी पड़ी थीं। उन गोलियों के निशान आज भी किला की जामा मस्जिद की दीवार और आसपास के घरों पर हैं। दरअसल, जब 6 जनवरी को तमाम हिंदू संगठनों और कार सेवकों ने अयोध्या में विवादित ढांचे को ढहा दिया था। 

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उसके बाद रेडियो पर इस घटना का प्रसारण हुआ तो एक ओर जहां हिंदू संगठन इस पर गर्व महसूस कर रहे थे। तो वहीं दूसरी तरफ दूसरे समुदाय में उबाल था। जिसके बाद बरेली में भी साम्प्रदायिक दंगा शुरू हो गया। लेकिन 7 जनवरी 1992 की सुबह पुराना शहर समेत शहर में कई जगहों के हालात काफी खराब हो चुके थे। पुलिस के लिए दंगाइयों को रोकना बड़ी चुनौती से कम नहीं था। इस दौरान तत्कालीन किला थाना इंजार्च डीके उपाध्याय ने बलवा कर रहे लोगों पर काबू पाने के लिए आंसू गैस के गोले और गोलियां तक चलवाई थीं। जिसके निशान आज भी बरकरार हैं।

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जामा मस्जिद की दीवार पर गोलियों के निशान मौजूद
8 दिसंबर को किला बाजार पूरी तरह बवालियों के कब्जे में था। इस दौरान दुकानें लूटी और जलाई जा रही थीं। किला चौराहे पर लेखराज श्रीवास्तव समेत कई दुकानदारों की दुकानें आग के हवाले कर दी गईं। जिसके निशान आज भी किला की जामा मस्जिद की दीवार और आसपास के घरों पर हैं। जब पुलिस ने गोलियां दागी थीं तो वह लोहे के खंबे को चीरती हुई दीवारों में जा धंसी। जिनके निशान आज भी 31 साल बाद वैसे ही बने हुए हैं। 

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आर्मी के हवाले किया गया था शहर
वहीं बाद में दंगे की आग से झुलस रहे शहर पूरी तरह से आर्मी के हवाले कर दिया गया। जब शहर की कमान आर्मी के पास आई तो उन्होंने कड़ा रूख इख्तियार कर शहर की फिजा को शांत किया। इसके बाद भी काफी समय तक शहर में फोर्स तैनात रही। फिर बाद बवालियों को पकड़ने का सिलसिला शुरू हुआ।। 

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