अमेठी: पुलिस पकड़े तो देसी तमंचा, पिस्टल के साथ फोटो वायरल होने पर बन जाती है लाइटर गन

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Published By Deepak Mishra
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पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती, तमंचा आउट डेट, बदमाश पिस्टल से अपडेट

लक्ष्मण प्रसाद वर्मा/अमेठी। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आये दिन अवैध असलहों के साथ युवावों की तस्वीर वायरल होती रहती है। इंटरनेट मीडिया पर तमंचे के साथ फोटो वायरल होने पर पुलिस भी सक्रिय हो जाती है। फिर पुलिस की जांच में पता चलता है कि वह तो लाइटर गन थी। हालांकि जब पुलिस मुखबिर की सूचना पर किसी युवक को पकड़ती है तो वह देसी तमंचा और बमुश्किल के एक या दो जिंदा कारतूस मिल जाती है। 

सोमवार को फुरसतगंज थाना क्षेत्र के एक गांव निवासी युवक की फोटो इंटरनेट साइड पर पिस्टल नुमा जैसे हथियार के साथ फोटो वायरल हुई थी। हालांकि पुलिस ने आनन फानन में युवक को हिरासत में लेकर जांच पड़ताल की तो वह लाइटर गन निकली, इसी तरह मंगलवार को कमरौली थाना क्षेत्र के गांव पलिया पश्चिम का रहने वाले युवक की पिस्टल जैसी तस्वीर के साथ फोटो वायरल हुई, जांच व विधिक कार्यवाही के लिए कमरौली पुलिस को निर्देश मिले है। लेकिन खबर लिखे जाने तक पुलिस के हाथ देर शाम तक खाली थे।

हथियारों के साथ फोटो वायरल होते ही अफसर सक्रिय हो जाते है, लेकिन थानेदार की लाइटर गन की आख्या लगते ही सब ठांय-ठांय फिस हो जाता है। डेढ़ दशक पहले तक अवैध हथियारों में तमंचा और देशी बंदूक का चलन ज्यादा था। पिस्टल जैसे सेमी ऑटोमेटिक हथियार तब चुनिंदा और बड़े बदमाशों के पास ही नजर आते थे।

लेकिन अब हालात ये है कि अधिकांश वारदातों में पिस्टल का इस्तेमाल ज्यादा नजर आता है। इसकी पुष्टि घटना और लगातार पकड़े जाने वाली अवैध हथियाराें की खेप से होती है। सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल और रिवाल्वरों से बदमाशों की हथियारों की क्षमता भी पुलिस के बराबर पहुंच रही है। यह हालात पुलिस के लिये एक बड़ी चुनौती है। 

छोटे बदमाशों की पकड़ में तमंचा  

पुलिस द्वारा वारदातों के लगातार खुलासे और मुखबिर द्वारा बताए गए बदमाशों के पास अधिकतर 315 बोर के साथ 12 बोर का तमंचा ही बरामद हुआ है। अब इनकी खपत पहले से कम हो गई है, हालांकि कम कीमत होने के कारण कुछ लोग अभी भी इसे खरीदते हैं और छोटे बदमाशों की पकड़ में भी अभी यह हथियार है। इसकी कीमत दो हजार से पांच हजार रुपये तक है, जबकि देशी बंदूक अधिकतम 10 हजार रुपये तक कीमत है।

पिस्टल की बढ़ रही मांग 

एक दशक में पिस्टल की मांग तेजी से बढ़ी है। सेमी ऑटोमेटिक हथियार होने के साथ ही साइज में छोटी होने के कारण बदमाश जहां इसका जहां ज्यादा प्रयोग करते हैं तो लाइसेंसी असलहों में भी इसकी ज्यादा डिमांड है। 0.32 बोर, 0.30 बोर और 9 एमएम में यह पिस्टल उपलब्ध है। जानकारों की मानें तो बदमाशों से ज्यादा युवा वर्ग सुरक्षा और शौक के लिए पिस्टल ज्यादा खरीद रहा है। इसका बड़ा कारण यह है कि अब इसकी कीमत उनकी पहुंच में है।

पिस्टल की कीमत 25 हजार से 70 हजार रुपये तक है। इनमें सबसे ज्यादा कीमत 9 एमएम पिस्टल की है। एक जमाना था कि पिस्टल और रिवाल्वर विदेशी ही होते थे और इनकी कीमत डेढ़ लाख रुपये कम से कम होती थी। लेकिन अब यह दोनों ही हथियार अवैध रूप से भी बनने लगे है।

हालांकि यह आश्चर्य से कम नहीं है कि पिस्टल जैसे हथियार देसी तौर पर बन रहे है। तमंचे और देसी बंदूके तो छोटे-मोटे यंत्रों के सहारे बन जाते है, लेकिन पिस्टल या रिवाल्वर को बनाने के लिये बड़ी खराद मशीनों की जरूरत होती है। जिसके जरिये इनके कल-पुर्जों को आकार दिया जा सके। कारखानों में ही यह काम संभव है लेकिन बिना पुलिस और राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं है।

अभियान चलाकर बराबर धर पकड़ की जाती है, इंटरनेट नेट अवैध असलहों के साथ प्रसारित फोटो पर भी एक्सन लिया जाता है, इस बारे में संबंधित थानों को जांच सौंप कर आख्या मांगी जाती है और कार्यवाही के लिए भी निर्देशित किया जाता है। .........डॉ. इलामारन जी एसपी अमेठी।

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