लखनऊ: 9 महीने का बच्चा अब रहेगा अपनी मां के साथ, बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष ने पेश की मानवता की मिसाल
लखनऊ, अमृत विचार। बाराबंकी स्थित बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष बाला चतुर्वेदी ने मानवता की मिसाल पेश की है। भारी विरोध और लंबे संघर्ष के बाद एक 9 महीने के बच्चे को उसकी मां और परिवार से मिलाकर औरों के लिए उदाहरण पेश किया है। गुरुवार को बच्चा अपनी मां की गोद में बिहार के समस्तीपुर स्थित अपने घर पहुंचा है।
दरअसल, साल 2023 के जून महीने में बाराबंकी स्थित सिद्धौर इलाके के गांव में एक महिला ने बच्चे को जन्म दिया था। स्थानीय लोग महिला को मानसिक विक्षप्ति बता रहे थे। महिला कहां से आई और उसका घर कहां पर था। इस बात की जानकारी किसी के पास नहीं थी। बताया जा रहा है कि खुली जगह पर बच्चे का जन्म हुआ था। इस दौरान बच्चे को लेने के लिए कुछ लोग आपस में विवाद भी कर रहे थे, लेकिन किसी ने इस बात की जानकारी चाइल्ड लाइन को दे दी। चाइल्ड लाइन और पुलिस की मदद से नवजात बच्चे और उसकी मां को गंभीर हालत में जिला महिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। एक महीने करीब अस्पताल में रहने के बाद बच्चा ठीक हो गया। इसके बाद मां और बेटे को अयोध्या स्थित महिला शरणालय भेज दिया गया। वहां पर मां अपने बच्चे को संभाल नहीं पा रही है की रिपोर्ट को आधार बनाकर लखनऊ भेज दिया गया। जहां पर मां और बच्चे को अलग कर दिया गया। बच्चे को शिशु गृह और मां को महिला शरणालय में रखा गया था।
इस दौरान करीब पांच बार मां से अलग रहने की वजह से बच्चा बीमार पड़ा। जिसके चलते उसे लखनऊ के लोहिया संस्थान में भर्ती कर इलाज दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया को शुरू से बाराबंकी बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष बाला चतुर्वेदी स्वयं देख रहीं थीं। उन्हें पहली बार में ही विश्ववास हो गया था कि महिला मानसिक विक्षप्त नहीं है बल्कि वह मेंटल ट्रामा से गुजर रही है। बस यही बात उनके मन को घर कर गई। इस बीच बच्चे को किसी और दंपति को गोद देने की प्रक्रिया भी होने लगी थी, लेकिन बाला चतुर्वेदी की कोशिशे रंग लाईं और जिसका आज सुखद परिणाम भी देखने को मिला है। आज बच्चा मां के साथ अपने परिवार के बीच में पहुंचा है।
बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष बाला चतुर्वेदी ने बताया कि सिद्धौर इलाके में बीते साल कोई व्यक्ति इस महिला को छोड़ गया था। गांव के लोग गर्भावस्था के दौरान महिला को खाने-पीने की कुछ चीजें दे दिया करते थे। जब महिला ने बच्चे को जन्म दिया। उस दिन चाइल्ड लाइन और पुलिस की मदद से महिला और बच्चे को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया था। उस समय मैं स्वयं महिला से मिली थी, सभी लोग कह रहे थे कि महिला मानसिक विक्षप्ति है, लेकिन काउंसलिंग के दौरान महिला अपने परिवार के बारे में पूरी जानकारी दे रही थी। जिससे पता चल रहा था कि वह मानसिक विक्षप्ति नहीं है। बस यही बात मन में बैठ गई थी कि जब वह अपने बच्चे को पहचान रही है, उसे नुकसान नहीं पहुंचा रही है। तो उससे उसके बच्चे को अलग न किया जाये।
उन्होंने बताया कि बाल कल्याण समिति का कार्य ही है बच्चे का सर्वोच्च हित और एक बच्चे के लिए उसकी मां के आंचल से ज्यादा सुरक्षित जगह और कौन हो सकती है। अब तो वह अपने परिवार के बीच में रहेगा। मेरा यही कार्य था जो मैने किया। मेरी जगह कोई और भी होता तो यही करता।
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