अमेरिका को सलाह

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
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केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नागरिकता संशोधन एक्ट (सीएए) को लागू कर सीधे तौर पर वसुधैव कुटुंबकम और शरणागत की रक्षा जैसे विचारों को धरातल पर खड़ा करने का प्रयास किया है। साथ ही भारत ने सीएए पर अमेरिका की टिप्पणी का जवाब देकर कड़ा संदेश दिया है कि किसी भी देश के अंदरूनी मामलों में अनधिकृत हस्तक्षेप से बचा जाना चाहिए।

सीएए भारत का आंतरिक मामला है। दरअसल अमेरिका ने भारत में सीएए लागू करने को लेकर अवांछित आपत्ति जताई और अनुचित बयान दिया कि वह इस पर कड़ी नजर रख रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत के संबंध में इतिहास की सीमित समझ रखने वाले हमें ज्ञान ना दें।

सीएए राज्यविहीनता के मुद्दे को संबोधित करता है, मानवीय गरिमा प्रदान करता है और मानवाधिकारों का समर्थन करता है। इससे लोगों को नागरिकता दी जाएगी न कि उनकी नागरिकता छीनी जाएगी। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, ऐसे में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर चिंता का कोई आधार नहीं है।

सीएए के अमल में आ जाने के बाद अब बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदुओं, जैन, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को यहां पांच साल तक निवास करने के बाद भारतीय नागरिकता दी जा सकती है। यह उन लोगों को अवैध प्रवासन की कार्यवाही से बचाने के लिए बनाया गया है। 

केंद्र सरकार ने जब इस कानून को लाने की तैयारी की थी, तभी से इसका विरोध भी शुरू हो गया था। 2019 में जब सीएए कानून को संसद से हरी झंडी मिली थी तब पूर्वोत्तर समेत कई राज्यों में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। प्रदर्शन करने वालों का कहना था कि सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है इसलिए इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है।

भाजपा इसमें अपना राजनैतिक लाभ देख रही है। कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन को देखते हुए उस समय सरकार ने सीएए को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। हालांकि, समय-समय पर इस मुद्दे पर चर्चा होती रही। कहा जा रहा है व्यापक विरोध के चलते ही कानून को लागू करने में देरी हुई। सच्चाई यह भी है कि कुछ राज्य सरकारों ने विधानसभा में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है, यह दर्शाता है कि कैसे इस मुद्दे पर राजनीति होती रही। जबकि नागरिकता देने में राज्य सरकारों की कोई जिम्मेदारी नहीं थी।