बरेली: चुनावी वादों से गुमराह हो जाती है जनता?, जानिए क्या कहते हैं वोटर्स

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Published By Vikas Babu
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बरेली, अमृत विचार: चुनाव में किए गए वादे अगर सच्चे होते तो देश कहां से कहां पहुंच चुका होता। न लोगों को जीवनयापन में इतनी कठिनाइयां होतीं न अपने भविष्य की चिंताओं से जूझना पड़ता। लोगों का मानना है कि चुनाव में किए जाने वाले ज्यादातर वादे सिर्फ जनता को गुमराह करने के लिए ही होते हैं लेकिन जनता भी उनकी सच्चाई कभी न कभी परख ही लेती है।

पिछले कुछ बरसों में राजनीतिक जागरूकता और ज्यादा बढ़ी है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि अशिक्षित लोग भावनाओं में बह जाते हैं लेकिन बहुत जल्द अपनी भूल सुधार भी लेते हैं। शिक्षित लोग वादों को तार्किकता के साथ समझते हैं। वे काम करने वाले नेता को ही चुनते हैं।

चुनाव जीतने के लिए नेता हवाई वादे करते हैं लेकिन जनता उनमें हर बार नहीं फंसती। नेताओं के कामों को लोग याद रखते हैं, अगर उन्हें लगता है कि नेता ने सिर्फ वादे किए हैं और काम नहीं तो वे उसे दोबारा वोट नहीं देते। जनता अपने भविष्य के बारे में सोचती है और उसी के लिए वोट देती है---माला रानी, इज्जतनगर।

चुनाव में किए गए वादों में जनता कभी-कभी फंस ही जाती है। लोग कितने भी पढ़े-लिखे हों लेकिन चुनाव में वादों पर भरोसा करना ही पड़ता है, लेकिन चुनाव के बाद उन्हें अपनी भूल भी समझ में आ जाती है और वे अपनी भूल को दोहराते नहीं हैं। कम से कम पढ़े-लिखे लोग तो बिल्कुल नहीं---वीएन महिंद्रा, राजेंद्रनगर।

पढ़े-लिखे लोग चुनाव लड़ने वाले नेताओं के झांसे में आसानी से नहीं आते। वे समझ लेते हैं कि कौन सा वादा सिर्फ चुनाव जीतने के लिए किया जा रहा है और उसमें कितना दम है। अनपढ़ लोग जरूर मीठे चुनावी वादों में फंस जाते हैं लेकिन उन्हें भी बार-बार झूठ बोलकर नहीं फंसाया जा सकता--- हरिदास चौहान, चनेहटा।

औरों के बारे में तो ज्यादा नहीं कह सकती लेकिन मैं बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं इसलिए चुनाव में किए गए वादों पर यकीन करके वोट दे देती हूं। मुझे लगता है कि नेता जो वादा कर रहा है, वह मेरे परिवार की भलाई के लिए है लेकिन बाद में बार-बार पछतावा भी होता है कि गलत वोट दे दिया---माधवी चौहान, चनेहटा।

भारत की जनता में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन उसमें राजनीतिक जागरूकता की कमी नहीं है। अगर ऐसा न होता तो एक ही सरकार लंबे समय तक देश और प्रदेश में राज करती रहती। चुनाव में किए जाने वाले वादे देश की जनता को ज्यादा दिन भ्रम में नहीं रख पाते हैं, चाहे कोई शिक्षित हो या अशिक्षत। शिक्षित होने का बस इतना फायदा होता है कि ऐसे लोग दूरगामी सोच रखते हैं और आसानी से नेताओं के झांसे में नहीं आते। वर्तमान के लिहाज से देखें तो जनता अगर कुछ हद तक एक या दो चुनाव में वादों में फंस जाती है तो उसके बाद सुधार भी कर लेती है। वही नेता लंबे समय तक चुनावी राजनीति में टिक पाता है, जो अपने कामों से जनता को संतुष्ट रख पाता है--- डॉ. श्रद्धा सक्सेना, प्रोफेसर राजनीतिक शास्त्र साहूराम स्वरूप महिला महाविद्यालय।

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