बदायूं में पहली बार महिला सांसद होने का संघमित्रा ने पाया था गौरव 

वर्ष 1991 के बाद भाजपा के सूखे को महिला सांसद ने किया था खत्म 

बदायूं में पहली बार महिला सांसद होने का संघमित्रा ने पाया था गौरव 

बदायूं, अमृत विचार। लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। सपा के गढ़ में पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा सेंध लगाकर विजय पताका फहराने की कोशिश में है। बदायूं संसदीय सीट पर लंबे समय तक तमाम राजनैतिक दलों का कब्जा रहा जिसमें सबसे ज्यादा सपा ने ही यहां जीत का परचम लहराया। खास बात यह रही कि यहां वर्ष 2019 से पहले कभी महिला सांसद नहीं बनी थीं।

पहली महिला सांसद होने का गौरव यहां भाजपा से चुनाव जीतीं डॉ. संघमित्रा मौर्य ने हासिल किया था। उन्होंने बदायूं लोकसभा सीट पर वर्ष 1991 के बाद से आए सूखे को खत्म किया था। वह भी सैफई घराने के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को शिकस्त देकर। इस बार भाजपा ने भले ही उनका टिकट काट दिया हो, लेकिन सियासी इतिहास में पहली महिला सांसद बनने का रिकार्ड उन्होंने अपने नाम कर लिया है। 

वर्ष 1991 में भाजपा की लहर के दौरान स्वामी चिन्मयानंद यहां से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और जीते भी थे। इसके बाद इस सीट पर सपा का ही वर्चस्व रहा वर्ष 1991 के बाद भाजपा कई बार अपनी सहयोगी पार्टियों के गठबंधन के साथ यहां पर जीत का परचम फहराने में जुटी रही, लेकिन इस सीट पर भाजपा के नाम से सूखा पड़ गया था। वोटरों का रुझान सिर्फ और सिर्फ यहां समाजवादी पार्टी की ओर रहा। ऐसे में भाजपा को यहां तमाम कोशिशों के बाद सफलता नहीं मिल रही थी। 

इसके अलावा इस सीट पर एक और इतिहास रहा कि कभी यहां महिला सांसद नहीं बनीं। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने यहां से डॉ. संघमित्रा मौर्य को चुनाव मैदान में उतारा। मगर, उनके सामने बढ़ी चुनौती के रूप में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भतीजे यहां से दो बार लगातार सांसद रहे धर्मेंद्र यादव थे। सपा के गढ़ में और सैफई परिवार के सदस्य को मात देना यहां आसान नहीं लग रहा था, लेकिन समीकरण बदले और अच्छे अंतर से डॉ. संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव को चुनाव मैदान में शिकस्त दे दी। 

इसके साथ ही उन्होंने पहली महिला सांसद होने का गौरव भी अपने नाम कर लिया। मगर, इस बार भाजपा ने उनके स्थान पर बृज क्षेत्र अध्यक्ष दुर्विजय सिंह शाक्य को चुनाव मैदान में उतारा है। सपा से मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव खुद चुनाव मैदान में हैं। इस बार देखना है कि जीत का सेहरा किसके सिर पर बंधे, लेकिन दोनों प्रत्याशी अपने अपने चुनावी गणित को समझाते हुए चुनावी नैया को पार लगाने की कोशिश में हैं।

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