हल्द्वानी: न टीन की छत बची और न बिछौना... सिसकते-सिसकते गुजर गई रात

हल्द्वानी:  न टीन की छत बची और न बिछौना... सिसकते-सिसकते गुजर गई रात

हल्द्वानी, अमृत विचार। शुक्रवार रात हुए अग्निकांड ने गरीबों का सब कुछ छीन लिया। न लकड़ियों पर टिकी  पॉलीथिन और टीन की छत बची और न बिछौना। कुछ बचा है तो राख और खुला मैदान। आग शांत हुई तो इनकी रात सिसकते-सिसकते गुजर गई। सुबह हुई तो बच्चों के लिए निवाले का इंतजाम परेशान बन गया। क्योंकि आग ने तो सब कुछ खाक कर दिया था। दोपहर गर्म थपेड़ों के बीच खुले मैदान में दिन गुजारना मजबूरी बन गया। इस अग्निकांड ने 25 लोगों के सिर से छत छीन ली है। 

बनभूलपुरा थाना क्षेत्र में रेलवे क्रॉसिंग के पास चिराग अली शाह बाबा की दरगाह के पास शुक्रवार देर रात अचानक झोपड़पट्टी में आग लग गई। आग ने एक के बाद एक 25 झोपड़ियों को अपनी जद में ले लिया। दमकल की आधा दर्जन गाड़ियां भी आग पर काबू नहीं पा सकीं। आग तब बुझी जब उसने झोपड़ियों को जलाकर राख कर दिया।

इस आग में गनीमत सिर्फ इतनी रही कि किसी की जान नहीं गई। बाकी आग ने न तो पहनने को कपड़े छोड़े और न बिछाने को बिस्तर। आलम यह है कि खाने के लिए भी अब औरों का मुंह ताकना पड़ रहा है। जलने वाली झोपड़ियों में एक झोपड़ी बन्नो बेगम की भी थी।

पति का सालों पहले देहांत हो चुका है। इसी झोपड़ी में अपने 6 बच्चों को पालते-पालते वह बीमार हो गईं। दो-दो ऑपरेशन हुए और अब जब लगा कि सब ठीक हो रहा है कि रात आग ने उनका झोपड़ा भी खाक कर दिया। बन्नो का कहना है कि हमारे पास पक्का घर तो नहीं था, लेकिन टीन और पॉलीथिन की छत आसरा तो दे ही रही थी। 

पेशे से राजमिस्त्री कल्लू भी अपने बच्चों और पत्नी के साथ यहीं रहते हैं। उनका झोपड़ा जला तो औरों की तरह उनका भी सब खाक हो गया। बमुश्किल वह झोपड़े में सोते बच्चों को बचा पाए। अब वह खुले मैदान में परिवार के साथ वक्त काट रहे हैं और चिंता इस बात की है कि अब दोबारा झोपड़ा कैसे बनेगा। वजह ये कि कल्लू के घर में रखी 25 हजार की नगदी, बिस्तर, कपडे और बाकी सब कुछ जल चुका है। 

खाक हुए इन सभी के घर
- यासीन पुत्र जुल्फकार
- मुस्तफा पुत्र मो. जमाल
- शदाब खान पुत्र मुन्ना खान
- अनवर अली पुत्र अजगर अली
- शाहवेज कुरैशी पुत्र कादिर कुरैशी
- वसीम कुरैशी पुत्र नईम कुरैशी
- सुहैल कुरैशी पुत्र शफिक कुरैशी
- नौशाद कुरैशी पुत्र एजाज कुरैशी
- सेबू पुत्र बब्लू
- अनीस पुत्र अब्दुल अजीज
- मुन्ना पुत्र शेरा 
- सलीम पुत्र मोहम्मद शफीक
- शैलून पुत्र बाहदुर
- शाजमा पति इकबाल
- नफीसा पति सुहेब
- रुकइया पति अब्दुल मननान
- आसमा पति इंतयाज
- शमीम बानो पति अब्दुल कादिर
- अमन पुत्र मो. इरफान
- शाह मोहम्मद पुत्र दीन मोहम्मद
- तरनुम पति सलीम
- शाहना पुत्र अली हुसैन 
- फरजाना पति राजू 
- परवीन पति अली हुसैन

सिर्फ तन पर बचे हैं पहने हुए कपड़े
शाजमा की रात रोते-रोते कटी। वो अपने जलते घर को देखतीं और बस आंसू पोंछतीं। शाजमा का कहना है कि तन पर सिर्फ पहने हुए कपड़े बचे हैं। बच्चों का हाल भी ऐसा ही है। समझ नहीं आ रहा कि आगे का वक्त कैसे गुजरेगा। मजदूरी करके बच्चों के खाने का इंतजाम तो हो जाएगा, लेकिन फिर से घर कैसे बनेगा और ये कब तक हो पाएगा। 

तूफानी हवाओं ने और भड़काई आग
 रात करीब 12 बजे झोपड़पट्टी में आग लगी। जिस वक्त यह घटना हुई अचानक मौसम बदल गया। लगभग तूफानी हवाएं चलने लगीं। गौला नदी का किनारा होने की वजह से हवाएं काफी तेज थीं और इसने आग को तेजी से भड़काया। उस पर बांस और पॉलीथिन से बनी झोपड़ियों ने आग में घी की तरह काम किया। आग लगी तो फिर थमी नहीं।

रिश्तेदारों के घर भेजे बच्चे, पड़ोसियों ने दिया आसरा
जहां अग्निकांड हुआ, वहां सौ से अधिक झोपड़ियां बनी हैं। कई परिवार की आपस में रिश्तेदारी भी है। छोटी झोपड़ियों में बड़े परिवार रहते हैं। फिर भी जब संकट आया तो वह परिवार मदद को आगे आए, जिनकी झोपड़ियां बच गई थीं। बच्चों को रिश्तेदारों ने अपने घर में आसरा दिया तो पड़ोसियों ने भी आगे बढ़कर मदद की। खाना खिलाया और पानी भी दिया।