बरेली: पेंशन के लिए बूढ़े शरीर आखिर कितनी दौड़ लगाएं, अफसर भी नहीं देते कोई ठोस जवाब

कई महिलाओं की वृद्धावस्था पेशन अचानक बंद हो गई, फिर शुरू नहीं हुई

बरेली: पेंशन के लिए बूढ़े शरीर आखिर कितनी दौड़ लगाएं, अफसर भी नहीं देते कोई ठोस जवाब

शब्या सिंह तोमर/बरेली,अमृत विचार। हर किसी की जिंदगी बदल देने के नए-नए वादों के साथ चुनाव गुजर गया लेकिन विधवा और वृद्धावस्था पेंशन के इंतजार में तमाम आंखों का सूनापन जैसे का तैसा रह गया। अपात्रों को पेंशन दिए जाने के सैकड़ों मामले सामने आने के बाद भी जिले में भी हजारों लोगों के आवेदन लंबित हैं, वह भी बरसों से। वादे करने में अफसर नेताओं से भी आगे निकल गए हैं। पेंशन के लिए भटक रही महिलाओं के लिए उनका अब नया वादा है कि चुनाव परिणाम आने के बाद उनका इंतजार खत्म हो जाएगा।

वादों के हकीकत में तब्दील होने के इंतजार में गुलाबनगर की जमीला को दरगाह पर रहकर गुजर-बसर करनी पड़ रही है। तीन साल पहले विकलांग पति की मृत्यु के बाद काफी समय दर-दर भटकती रहीं और फिर यहां चली आईं। बताती हैं कि पति जीवित थे तो वृद्धावस्था पेंशन मिलती थी, उनके गुजरने के बाद कचहरी पर एक दलाल उनसे विधवा पेंशन का फार्म भरवा दिया। इसके बाद विधवा पेंशन तो शुरू नहीं हुई लेकिन वृद्धावस्था पेंशन रोक दी गई। तभी से लगातार कलेक्ट्रेट और विकास भवन के चक्कर लगा रही हैं लेकिन पेंशन मिलनी शुरू नहीं हुई। जमीला कहती हैं कि पति ने कसम दे दी थी, इसलिए वृद्धाश्रम नहीं गईं। एक शादीशुदा बेटी है लेकिन आत्मसम्मान वहां भी जाने से रोक देता है। पेंशन से गुजर-बसर की उम्मीद थी लेकिन तीन साल बाद यह उम्मीद भी टूटने लगी है।

मजनूपुर की शकीला बेगम भी दो साल से वृद्धावस्था पेंशन मंजूर होने का इंतजार कर रही हैं। शकीला बताती हैं कि कई साल से पेंशन मिल रही थी लेकिन दो साल पहले अचानक बंद हो गई। उसके बाद सैकड़ों चक्कर काट चुकी हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। कहती हैं, घर में बेटा-बहू हैं लेकिन आजकल कोई किसी का नहीं है। बुढ़ापे में पैसा हाथ में तभी पूछते हैं। बेटा जरदोजी करके अपना घर चलाता है लेकिन शकीला की मुश्किल यह है कि उनके बूढ़े हाथ अब सुई ही नहीं पकड़ सकते।

किला में रहने वाली कमलेश देवी ने बताया पिछले साल वृद्धावस्था पेंशन का फार्म भरा था। एक साल बाद भी कुछ नहीं हुआ। कलेक्ट्रेट गईं तो बताया गया कि उनके आवेदन पर विकास भवन में कार्रवाई होगी लेकिन विकास भवन पहुंचीं तो वहां उनका कोई रिकार्ड ही नहीं मिला। रिठौरा की लौंगश्री ने बताया कि उनकी पेंशन आवेदन करने के डेढ़ साल बाद भी नहीं आई है। बुढ़ापे में भी चक्कर काट रही हैं। हर बार सिर्फ इतना कहकर लौटा दिया जाता है कि अभी उनकी पेंशन मंजूर नहीं हुई है। अब चुनाव का बहाना बनाया जा रहा है।

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