अब कम दिखाई देती हैं 'बया की कालोनी', हरियाली की कमी से चिड़ियों के अस्तित्व पर संकट, इंसान की फितरत से परिंदों ने बदला ठिकाना

अब कम दिखाई देती हैं 'बया की कालोनी', हरियाली की कमी से चिड़ियों के अस्तित्व पर संकट, इंसान की फितरत से परिंदों ने बदला ठिकाना

सीतापुर, अमृत विचार। जमाना बढ़ के वही पेड़ काट देता है, मैं जिसकी शाख पे इक घोंसला बनाता हूं। यह दर्द है उन बेजुबान पक्षियों का, जिन्हें अब अपना आशियाना बनाने के लिए सुरक्षित हरे-भरे पेड़ ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। एचटी लाइन पर बने बया के दर्जनों घोंसले खुद इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। इलाके के चड़रा- नौगवां और जगदेवा मार्ग पर लगे बिजली के खंभों से निकलने वाली एचटी लाइन पर बया के घोंसले बंदनवार की तरह सजे दिखते हैं।

सपेरे की बीन की तरह हवा में लटकते हुए एक से डेढ़ फीट लंबे ये अनोखे घोंसले राहगीरों के लिए किसी कौतूहल से कम नहीं हैं। बया चिड़िया विलुप्ति के कगार पर है। घोंसले बनाने की अपनी अनोखी कला के चलते इसे बुनकर पक्षी (वीवर बर्ड) कहा जाता है। अपना घोंसला बनाने में इस चिड़िया को दुनिया भर के पक्षियों से श्रेष्ठ माना जाता है। सभी चिड़िया दो डालों के बीच अपना घोंसला बनाती हैं जबकि बया एक डाल पर। वो भी हवा में लटकने वाला। 

ये घोंसले इतने मजबूत होते हैं कि तेज आंधी में भी नीचे नहीं गिरते। प्रजनन काल में शिकारी पक्षियों से सुरक्षा के चलते बया अपने घोंसले बस्ती के रूप में बनाती है। घोंसले में जाने के लिए नीचे नली में छोटा सा रास्ता होता है और अंडे देने के लिए अंदर तहखाना। ग्रामीण तो यहां तक बताते हैं कि बया इकलौता ऐसा पक्षी है जो अपने जोड़े के मर जाने पर दुख में अपने प्राण त्याग देता है। अफसोस, तालाबों की पटाई और पेड़ों की कटान के चलते बया के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।

छिन गया दाना-पानी

गांवों के विस्तार, ग्रामीणों की बदलती जीवन शैली के चलते चिड़ियों के रहन-सहन में दिक्कतें आ रही हैं। गांव के खेत- खलिहान, तालाब और बाग-बगीचे कंक्रीट के जंगल में बदल चुके हैं।पेड़ों की जगह बिजली के खंभों, मोबाइल टावरों और पक्के मकानों ने ले ली हैं। पक्षी बेघर हो गए हैं और उनका दाना-पानी छिन गया है।

जंगल से ज्यादा आबादी पर भरोसा 

हरियाली कम होने से बया चिड़िया अब आबादी की ओर रुख कर रही हैं। लालपुर सिकटिहा गांव में बने डिग्री कॉलेज के सामने और तेंदुआ गांव में नंदा के सहन में लगे खजूर के पेड़ पर आधा सैकड़ा से अधिक बया के घोंसले लटक रहे हैं। नंदा बताते हैं करीब दो माह पहले बया के झुंड ने हजारों तिनके लाकर घोंसले बनाए थे। घोंसला बनाने में करीब एक महीने का समय लगा था। बया घोंसले में अंदर से मिट्टी की परत लगाती है जिसमें जुगनू चिपकाती है। सुबह घोंसला छोड़ देने वाली बया का झुंड शाम को वापस आता है।

लाइव वर्ल्ड सेंचुरी के द्वारा चिड़ियों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। वन विभाग के अंतर्गत हम पशु-पक्षियों को पकड़ने वालों के विरुद्ध कार्रवाई कर सकते हैं.., केएन भार्गव, क्षेत्रीय वन अधिकारी, महोली रेंज।

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