Kanpur: गर्भावस्था में लापरवाही से नवजातों की आंखों को खतरा, हर महीने रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी से ग्रसित मिल रहे इतने शिशु

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Published By Deepak Shukla
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कानपुर, अमृत विचार। गर्भावस्था के दौरान लापरवाही और पोषण युक्त चीजों का सेवन न करने से सीधा असर गर्भ में बच्चे पर पड़ता है। बच्चों को कुछ बीमारियों का सामना करना पड़ता है। अंधता रोग होने की भी आशंका अधिक रहती है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में प्रतिमाह औसतन सौ रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी (आरओपी) बच्चों की स्क्रीनिंग कर उनका लेजर विधि से निशुल्क इलाज किया जा रहा है।

रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी (आरओपी) बीमारी से ग्रस्त बच्चों की आंखों की रोशनी जाने से जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में प्रो.परवेज खान बचा रहे हैं। नेत्र विभाग में वर्तमान में आरओपी से ग्रस्त हर माह 80 से 100 बच्चों को लेकर अभिभावक पहुंच रहे हैं। जबकि पांच साल पहले इस बीमारी से ग्रस्त प्रतिमाह 20 से 30 बच्चे ही इलाज के लिए आते थे। 

प्रो. परवेज खान ने बताया कि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है। ऐसे बच्चों की आंखों में रेटिनोपैथी जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में आंखों में जाने वाली खून की कोशिकाएं गर्भावस्था के दौरान धीरे-धीरे विकसित होती हैं, जिसकी वजह से उनके आंखों के पर्दों पर कई परतें जमा हो जाती हैं और बच्चों को कम दिखाई देता है। 

समय से जांच होने पर इस बीमारी का इलाज संभव है। आरओपी से ग्रस्त बच्चों की विभाग में इंजेक्शन व ग्रीन लेजर विधि से सर्जरी निशुल्क की जा रही है। निजी अस्पतालों में इसके लिए अभिभावकों को 25 से 30 हजार रुपये तक चुकाने पड़ते है। बताया कि अभिभावकों की लापरवाही, बीमारी पकड़ में नहीं आने और इलाज में देरी होने से कई बच्चे अंधता रोग के शिकार हो जाते थे। 

क्योंकि ऐसे बच्चों का इलाज जन्म से लेकर एक माह के अंदर कराना होता है। समय बीतने पर बच्चे की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है। बच्चों को अंधता रोग से बचाने के लिए प्रिमिच्योर बच्चों की स्क्रीनिंग की जा रही है। 

इंजेक्शन व लेजर दोनों विधि हैं कारगर 

प्रो.परवेज खान ने बताया कि रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी बच्चों का इलाज दो विधि से किया जाता है। स्क्रीनिंग में या जानकारी होने पर अभिभावक समय पर बच्चों को पहले या दूसरे चरण में लेकर आते हैं तो उन्हें इंजेक्शन के माध्यम से ठीक किया जाता है। लेकिन तीसरी या चौथे चरण में आने वाले बच्चों को इंजेक्शन देने के साथ ही लेजर विधि से सर्जरी कर आंखों की रोशनी बचाई जाती है। यह इंजेक्शन प्रो.परवेज खान अपनी तरफ से बच्चों को निशुल्क लगा रहे हैं जिसकी बाजार में कीमत 25 हजार रुपये है। 

एनआईसीयू अच्छा होने से मिल रही राहत

प्रो.परवेज खान ने बताया कि हैलट अस्पताल में पहले स्क्रीनिंग की सुविधा नहीं थी और ऑपरेशन भी नहीं होते थे। इस वजह से मरीज अस्पताल नहीं आते थे, बल्कि लखनऊ, दिल्ली या मुंबई जाते थे। लेकिन जब से हैलट में बाल रोग विभाग का एनआईसीयू अच्छा हुआ है, तब से सुविधाएं बढ़ी हैं। बाल रोग विभाग और नेत्र रोग विभाग ने मिलकर यह स्क्रीनिंग का प्रोग्राम शुरू किया है। इस वजह से हर सप्ताह 15 से 20 मरीज आ रहे हैं। 

ऑक्सीजन का रेटिना पर पड़ता असर

खानपान, रहन-सहन सही न होना, संक्रमण, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, हाई ग्रेड फीवर आदि हाई रिस्क में शामिल गर्भवती को प्रीमिच्योर डिलीवरी की संभावना अधिक रहती है। प्रीमिच्योर डिलीवरी के दौरान कुछ बच्चों की हालत गंभीर होती है, तब ऐसे बच्चों को एनआईसीयू में रखा जाता है। बच्चों को सांस लेने में दिक्कत न हो इसलिए उनको ऑक्सीजन भी लगाया जाता है। अधिक दिनों तक ऑक्सीजन देने पर बच्चे की रेटिना पर असर पड़ता है, जिससे आंखों की रोशनी प्रभावित होती है।

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