Amroha News : 75 रुपये का जुर्माना वसूलने के लिए क्रांतिकारी की भैंस अंग्रेजों ने कर ली थी नीलाम
दढियाल के पंचायत घर में क्रांतिकारी बनाते थे रणनीति, मुरादाबाद की जेल में काटी थी सजा
गंगेश्वरी के दढियाल स्थित पंचायत घर, जहां होती थी क्रांतिकारियों की पंचायत, क्रांतिकारी चौधरी बाबू सिंह के बेटे व सेवानिवृत शिक्षक ज्ञानेंद्र सिंह आर्य।
रहरा (अमरोहा), अमृत विचार। मेरे शहर में चलती है हवा और तरह की, जुर्म और तरह के हैं, सजा और तरह की। मशहूर शायर मंसूर उस्मानी की ये पंक्तियां गंगेश्वरी के उन वीरों पर सटीक बैठती हैं, जिन्होंने अपने मुल्क की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेकर आर्थिक दंड व तरह-तरह की यातनाएं भी झेलीं। उनकी तमन्ना थी, सिर्फ दूसरों के अत्याचार से मुक्त होकर अपने देश को आजाद करने की।
दढियाल के पंचायत घर में रणनीति क्रांतिकारी बनाते थे। दढियाल जिला मुख्यालय से 53 किलोमीटर दूर और जनपद संभल की सीमा से सटा हुआ है। यहां के निवासी क्रांतिकारी चौधरी बाबू सिंह ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबा दिए थे। घटना वर्ष 1940 के आसपास की है। उनके बेटे व सेवानिवृत शिक्षक ज्ञानेंद्र सिंह आर्य बताते हैं कि गांव में एक बार अंग्रेज आए और लोगों से वसूली करने लगे। इसकी सूचना उनके पिता चौधरी बाबू सिंह को हुई तो उन्होंने अंग्रेजों के साथ वसूली करने आए एक अमीन की पिटाई कर दी। इस पर अंग्रेजों ने उनके खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर उन्हें जेल में डाल दिया था।
क्रांतिकारी चौधरी बाबू सिंह ने क्षेत्र के अन्य क्रांतिकारियों के साथ अप्रैल से नवंबर 1941 तक मुरादाबाद की जेल में सजा काटी थी। इसके बाद उन पर 75 रुपये का जुर्माना लगाया गया था, लेकिन घर में आर्थिक तंगी होने की वजह से चौधरी बाबू सिंह यह जुर्माना अदा नहीं कर सके तो अंग्रेजों ने आदमपुर थाने में उनकी एक भैंस और लवारे को नीलाम करके जुर्माना वसूला था।
परिवार की चिंता छोड़ दो भाइयों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के
रहरा, अमृत विचार : आजादी की लड़ाई में गंगेश्वरी के वीरों का विशेष योगदान रहा है। अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से आजाद करने के लिए पृथ्वी सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़कर क्रांति का रास्ता चुना। इसके बाद उनके छोटे भाई मुनिदेव त्यागी के मन में भी देश को आजाद करने की ज्वाला भड़क उठी। मुनिदेव भी देश को आजाद कराने के लिए अपने परिवार की चिंता छोड़ आजादी की लड़ाई में कूद गए थे।
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