पंतनगर: अब किसानों को मालामाल करेगी ’पंत मसूर-16’ की खेती

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Published By Bhupesh Kanaujia
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मृगांक मौली पंतनगर, अमृत विचार। पारंपरिक खेती से ऊब चुके किसानों के जीवन में अब दलहन की खेती खुशहाली लाएगी। जीबी पंत कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने मसूर की एक ऐसी प्रजाति विकसित की है, जो चूर्णी-फंफूदी और एस्कोकाईटा ब्लाइट सहित फली बेधक कीटों के लिए तो प्रतिरोधी है ही, इसकी उपज भी अन्य प्रजातियों से 28 प्रतिशत तक अधिक है।

भारत मुख्य रूप से शाकाहारी देश है, जहां प्रोटीन की आवश्यकता पूरी करने के लिए लोग दालों पर पूरी तरह निर्भर हैं। वर्ष 2014-15 तक देश में जहां विभिन्न दलहनों का उत्पादन 150-160 लाख टन प्रतिवर्ष था, वहीं आज दलहन उत्पादन 260 लाख टन प्रतिवर्ष से अधिक हो गया है। जिससे कीमतों में भी ठहराव देखा जा रहा है।

आज दलहन की प्रति व्यक्ति उपलब्धता बढ़कर 45 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो गई है। फिर भी लगभग 25-30 लाख टन विभिन्न दलहनों का आयात किया जा रहा है। देश को वर्ष 2027 तक पूर्ण रूप से दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। जिसके लिए बदलते वातावरण के अनुकूल अधिक उपज देने वाली रोग एवं कीट रोधी प्रजातियों को विकसित कर उनके पर्याप्त मात्रा में बीज किसानों को उपलब्ध कराना जरूरी हो गया है।

पंत विवि के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित मसूर की यह नई प्रजाति दो-चार सितंबर को इंटरनेशनल सेंटर फाॅर एग्रीकल्चरल रिसर्च इन ड्राई एरियाज भोपाल में आईसीएआर के डीडीजी डाॅ. टीआर शर्मा की मौजूदगी में अखिल भारतीय रबी दलहन परियोजना की वार्षिक बैठक में जारी करने का निर्णय लिया गया।

यह प्रजाति उत्तर पहाड़ी (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र, असम एवं अन्य उत्तर पूर्वी) राज्यों में उगाने के लिए संस्तुत की गई है। विवि के कुलपति डाॅ. मनमोहन सिंह चैहान, निदेशक शोध डाॅ. अजिीत सिंह नैन व अधिष्ठाता कृषि डाॅ. शिवेंद्र कश्यप ने खुशी व्यक्त करते हुए यह प्रजाति विकसित करने वाले वैज्ञानिकों डाॅ. एसके वर्मा, डाॅ. आरके पंवार व डाॅ. अंजू अरोड़ा को बधाई दी है।

पंत मसूर-16 की यह है विशेषता
वैज्ञानिक डाॅ. एसके वर्मा ने बताया कि पंत मसूर-16 प्रजाति, भारत के उत्तर पर्वतीय क्षेत्रों में तीन वर्षों तक अखिल भारतीय उपज परीक्षणों में मानक प्रजातियों शालीमार मसूर-2, वीएल-507 एवं वीएल-514 से क्रमशः 25.59, 27.80 एवं 25.45 प्रतिशत अधिक उपज दी है। तीन वर्षों तक हुए परीक्षणों में इसकी औसत उपज 16-18 क्विंटल/हेक्टेयर रही। यह प्रजाति रतुआ और उकठा रोग और फली बेधक कीट के लिए प्रतिरोधी है। इसकी परिपक्वता अवधि 140-150 दिन है। इसके 100 दानों का वजन लगभग 2.6 ग्राम है।

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