चित्रकूट या गोंडा के तुलसीदास: मानस के रचयिता की जन्मस्थली का विवाद भी पहुंचा कोर्ट, यह ऐतिहासिक तथ्य हैं आधार..25 नवंबर को सुनवाई

Amrit Vichar Network
Published By Sunil Mishra
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अमृत विचार, गोंडा:  मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के बाद अब श्रीरामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्मस्थली का विवाद भी अदालत पहुंच गया है।  गोंडा के रहने वाले व तुलसीदास जन्मस्थली विवाद की लड़ाई लड़ रहे डा. स्वामी भगवदाचार्य ने इस विवाद के निपटारे के लिए गोंडा सिविल कोर्ट में वाद दायर किया है। तुलसीदास जी का जन्म गोंडा के राजापुर में हुआ था या बांदा ( अब चित्रकूट) में इसका फैसला अब अदालत ही करेगी‌।  इस वाद पर 25 नवंबर से सुनवाई प्रारंभ होगी। सनातन धर्म परिषद तथा श्री तुलसी जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष डा. स्वामी भगवदाचार्य ने रविवार को प्रेस कांफ्रेंस कर यह वाद दायर किए जाने की जानकारी दी।

गोंडा जिले में सरयू नदी के तट पर स्थित सूकरखेत के निकट राजापुर को गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि घोषित किए जाने की मांग को लेकर पिछले चार दशक से देश भर में जागरूकता अभियान चला रहे डा. भगवदाचार्य ने कहा कि गोस्वामी जी की जन्मभूमि राजापुर (गोंडा) होने के बारे में एक नहीं, अनेक अकाट्य प्रमाण हैं। पूरे देश के विश्वविद्यालयों में जाकर उन्होंने इस विषय पर गोष्ठियों और सम्मेलनों के माध्यम से अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग से रखी है। कई बार इस पर विद्वानों द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय भी लिया जा चुका है, किन्तु जनप्रतिनिधियों में इच्छाशक्ति की कमी के कारण यह विवाद ज्यों का त्यों बना हुआ है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा दावा बांदा (अब चित्रकूट) के राजापुर का है, किंतु वह ऐतिहासिक दस्तावेजों द्वारा पूरी तरह से खारिज हो जा रहा है। जनवरी 1997 में लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने बांदा व एटा के दावों को तथ्यहीन एवं निराधार माना तथा गोंडा के राजापुर को तुलसी की प्रामाणिक जन्म भूमि के रूप में स्वीकार किया। 

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महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में कुलपति प्रो. सुरेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में आयोजित चतुर्थ विश्व तुलसी सम्मेलन में विद्वानों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि गोस्वामी तुलसीदास की जन्म स्थली गोंडा जिले का राजापुर ही है। भविष्य में इस विषय पर और विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद अब तक अधिकारिक रूप से राजापुर (गोंडा) को गोस्वामी जी की जन्मभूमि घोषित नहीं किया जा सका है। स्वामी डा भगवदाचार्य ने कहा कि करोड़ो लोगों के आस्था के प्रतीक प्रभु श्रीराम तथा श्री कृष्ण की जन्मभूमि का निर्धारण जब अदालतों द्वारा ही किया जा रहा है, तो श्रीराम चरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्मभूमि का निर्धारण भी ठोस साक्ष्यों के आलोक में अदालत से ही कराया जाएगा। इसके लिए जिले की एक अदालत में वाद योजित किया गया है। जन्मभूमि के विवाद के निर्धारण के लिए केंद्र व राज्य सरकारों समेत सभी सम्बद्ध पक्षों को पार्टी बनाया गया है। इस मामले पर कोर्ट आगामी 25 नवम्बर से सुनवाई करेगी। 

अवमुक्त धनराशि को रोकने के लिए शासन को लिखा पत्र  
राज्य सरकार ने राजापुर (चित्रकूट) के विकास के लिए 21 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है। पहली किस्त के रूप में 4.50 करोड़ रुपये की धनराशि भी अवमुक्त कर दी गयी है। इसके बाद अब तुलसीदास जी की जन्मभूमि का विवाद एक बार फिर से तूल पकड़ने जा रहा है‌। सनातन धर्म परिषद तथा श्री तुलसी जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष डा स्वामी भगवदाचार्य ने अवमुक्त धनराशि को तत्काल रोकने के लिए शासन को तथ्यों से अवगत कराते हुए पत्र भी लिखा है। 

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गजेटियर में भी उल्लेख, गोंडा के राजापुर में जन्मे थे तुलसीदास
डा. भगवदाचार्य के अनुसार, आईएएस अधिकारी डांगली प्रसाद वरुण के सम्पादन में प्रकाशित बांदा जिले के गजेटियर के पृष्ठ संख्या 301 पर स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि राजापुर, जिसे मजगंवा भी कहते हैं, बांदा शहर से 88 किमी. दूर यमुना नदी के दाहिने तट पर स्थित है। ‘ऐसा कहा जाता है कि राम चरित मानस के रचयिता, प्रसिद्ध संत तुलसीदास यमुना के तट पर जंगल में आए थे, जहां अब राजापुर है और स्वयं को प्रार्थना व ध्यान में समर्पित कर दिया। उनकी पवित्रता ने जल्द ही अनेक अनुयायियों को आकर्षित किया, जो उनके आसपास बस गए।’ वह कहते हैं कि बांदा का गजेटियर स्वयं वहां के समर्थकों का दावा खारिज करता है। गजेटियर के अनुसार, तुलसीदास नामक एक संत राजापुर (पूर्व में मजगवां) आए, न कि वहां पैदा हुए। 

जिस गांव को तुलसीदास ने ही बसाया वह जन्मभूमि कैसे 
इम्पीरियल गजेटियर आफ इंडिया (कोलकाता) का वॉल्यूम 21 भी बांदा गजेटियर का समर्थन करता है। गजेटियर के अनुसार, ‘इस शहर (राजापुर) की स्थापना रामायण के प्रसिद्ध लेखक तुलसीदास ने की थी।’ बांदा गजेटियर की ही बात मानें तो स्पष्ट है कि तुलसीदास के वहां आने के बाद उनके अनुयायी सानिध्य में आते गए और बसते गए। परिणाम स्वरूप एक गांव बस गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि बांदा के राजापुर को गोस्वामी तुलसीदास ने बसाया था। जो व्यक्ति किसी गांव को बसाने वाला हो, वह उसकी जन्मभूमि कैसे हो सकती है?

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तुलसीदास ने विनय पत्रिका में लिखा कि उनका नगर अवध
विनय पत्रिका में ‘राजा मेरे राजाराम, अवध सहरू है’ के माध्यम से गोस्वामी जी ने साफ कर दिया है कि उनके स्वामी राम हैं तथा उनका नगर अवध है। उनकी जन्मभूमि राजापुर और गुरु नरहरि दास का आश्रम सूकरखेत अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा मार्ग पर ही स्थित है। राजापुर में आज भी भारद्वाज गोत्रीय दुबे ब्राम्हणों के यहां शादी विवाह के अवसरों पर महिलाएं सांझ न्यौतने के समय तुलसी, पिता आत्माराम व माता हुलसी को बुलौवा देकर याद करती हैं। पितृ पक्ष में तुलसी व आत्माराम के नाम श्राद्ध किया जाता है। यहां तक कि गोस्वामी जी के पिता आत्माराम दुबे के नाम राजस्व अभिलेखों में राजापुर में भूखंड संख्या 2281 क्षेत्रफल 9.04 एकड़ ‘आत्मा राम का टेपरा’ नाम से दर्ज है। 31 मई 1960 को दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय हिन्दी परिषद के अधिवेशन में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने सोरों (एटा) की समस्त सामग्री को अप्रमाणिक, तर्कहीन, जाली एवं निराधार सिद्ध कर दिया। डा. नगेन्द्र के बार-बार आह्वान करने के बाद भी अधिवेशन में उपस्थित कोई विद्वान इसका निराकरण करने के लिए आगे नहीं आया।

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