Kanpur: एल्डरमैन की तर्ज पर पार्षद नामित करने की बढ़ी उम्मीद, भाजपा ने गैर राजनीतिक अनुभवी लोगों का लिया बायोडाटा
विशेष संवाददाता, कानपुर। भाजपा ने नगर निगम में नामित होने वाले पार्षदों के नाम का पैनल प्रदेश नेतृत्व को भेज दिया है। इसमें एमपी, एमएलए द्वारा प्रस्तावित नामों को तरजीह दी गयी है। इससे पहले जिलाध्यक्ष पद के लिए ऐसा किया गया था। नामित पार्षदों में कुछ गैरराजनीतिक अनुभवी हो सकते हैं जिनका लाभ शहर को मिल सकता है।
इसे 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी की दृष्टि से देखा जा रहा है। नेतृत्व का इशारा पाकर एल्डरमैन जैसी योग्यता रखने वालों की तलाश जारी है। कुछ नाम भेजे भी जा चुके हैं। महापौर के प्रत्यक्ष चुनाव से पहले निकाय सदन में एल्डर मैन नामित किए जाते थे। ये लोग दलगत राजनीति के बजाय अनुभव और विशेष योग्यता वाले होते थे। यह परम्परा अब खत्म हो गयी है।
भाजपा के पूर्व मेयर कैप्टन पंडित जगतवीर सिंह द्रोण कहते हैं कि एल्डर मैन का उपयोग शहर के विकास में अति महत्वपूर्ण हुआ करता था। नामित पार्षदों में कुछ संख्या एल्डर मैन की तर्ज पर नाम भेजने की परम्परा शुरू की जा सकती है। विकास की योजनाओं में इनके विचार और अनुभव का लाभ नगर निगम (तब महापालिका) को मिला करता था। ऐसा ही अबकी भी हो सकता है। द्रोण का कहना है कि इसमें टाउन प्लानर, पूर्व आईएएस, एडवोकेट, स्पोर्ट्स मैन, पत्रकार, उद्योगपति आदि श्रेणी के लोगों से मिलकर उन्हें एल्डर मैन मनोनीत किया जाता था।
ऐसी ही पहल भाजपा सरकार को करनी चाहिए। लोकतंत्र में जैसे राज्यसभा में सांसद नामित किए जाते थे ताकि उनके अनुभव और क्षेत्र विशेष में ज्ञान का लाभ देश को मिल सके। इसी तर्ज पर कानपुर नगर महापालिका में भी आठ ‘एल्डरमैन’ नामित किए जाने की परम्परा थी। तब 36 वार्डों में 72 पार्षद (सभासद) हुआ करते थे और आठ एल्डर मैन नामित किए जाते थे। इन्हें वोटिंग का अधिकार भी होता था। 1988 के चुनाव से यह परम्परा खत्म हो गयी थी।
पूर्व भाजपा सांसद व महापौर द्रोण का कहना है कि सरकार चाहे तो नामित पार्षदों के कोटे में विभूतियों को नामित कर सकती है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार अगर यह प्रयोग एक बार फिर करे तो निश्चित नियोजन और क्रियान्वयन के क्षेत्र में नगर निगम को मदद मिल सकती है। इन्हें एल्डर मैन के स्थान पर कोई भी नाम दिया जा सकता है।
पूर्व पार्षद वरिष्ठ कांग्रेस नेता शंकरदत्त मिश्र ने एल्डर मैन मनोनयन का इतिहास बताते हुए कहा कि प्रदेश सरकार यह परम्परा शुरू कर सकती है। पहले ऐसा होता था। पूर्व इंजीनियन, नौकरशाह, मीडिया, साहित्यकार, रंगकर्मी आदि क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नगर निगम में होना चाहिए।
