जंगल किनारे आस्था का ज्वार, महादेव की जय-जयकार

हल्द्वानी, अमृत विचार : सावन में बाबा भोले का खूब सत्कार किया जाता है। दूध, दही से उन्हें स्नान कराया जाता है और फिर भांग, धतूरे का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि भांग, धतूरा बाबा भोले को अतिप्रिय है। भगवान भोले का ऐसा ही एक सिद्ध मंदिर टांडा जंगल की दहलीज पर बना है, जिसकी कहानी 160 साल पुरानी है। ये किस्सा योगी बेलबाबा से जुड़ा है और सावन के दिनों में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है।
हल्द्वानी से रुद्रपुर की ओर जाते वक्त रास्ते में घना टांडा जंगल है। हल्द्वानी की सीमा में जहां से इस जंगल की शुरुआत होती, उसी किनारे पर बेलबाबा का भव्य मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव और बेलबाबा के प्रति लोगों का अटूट विश्वास है। ऐसी मान्यता है कि अब से करीब 160 साल पहले जहां मंदिर है, वह स्थान घने जंगल का हिस्सा था। इस घने जंगल में योगी बेलबाबा वास करते थे। एक बार क्षेत्र में भयंकर सूखा पड़ा। खेती-बाड़ी और जंगल उजाड़ होने लगे। ऐसे में स्थानीय लोग बेलबाबा के पास पहुंचे। सूखे की मार झेल रहे लोगों ने बाबा से गुहार लगाई और सूखे से उबरने का उपाय पूछा। कहा जाता है कि बाबा ने लोगों से कहाकि उनके जाने के बाद यहां बरसात होगी।
अगले दिन बाबा अचानक गायब हो गए और फिर किसी को कभी नजर नहीं आए। बाबा के गायब होते ही क्षेत्र में जमकर बरसात हुई और फिर एक बार खेती-बाड़ी और जंगल हरियाली से लहलहाने लगे। तभी से लोगों की बेलबाबा के प्रति आस्था बढ़ी। बेलबाबा एक योगी और भगवान शिव के परम भक्त थे। ऐसे में वर्ष 1966 में उसी स्थान पर बेलबाबा मंदिर का निर्माण कराया गया, जहां बेलबाबा ने अंतिम बार स्थानीय लोगों को दर्शन दिए थे। इस स्थान पर सबसे पहले शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। बाद में बेलबाबा की प्रतिमा स्थापित की गई। इसके बाद मंदिर का स्वरूप लगातार बढ़ता रहा और आज यहां महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोले के दर्शन के लिए कई-कई किलोमीटर लंबी लाइन लगती है।
मनोकामना पूरी होने पर भक्त कराते हैं भंडारा
हल्द्वानी : मंदिर में वैसे तो प्रति दिन सैकड़ों भक्त दर्शन करने आते हैं, लेकिन सावन में मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर में पूजा की विशेष व्यवस्था की जाती है। बाबा का मुख्य प्रसाद बेलपत्र और दूध है। यहां मंदिर पर दूध भी चढ़ाने की प्रथा है। हजारों भक्त इस मंदिर में दूध चढ़ाने आते हैं और मनोकामना करते हैं। मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद भंडारा कराते हैं। कहा जाता है एक बार जो बाबा के दर्शन कर ले वह फिर बाबा के पास जरूर पहुंचता है।