मुरादाबाद : मध्यम परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति से उबरकर बनीं लखपति दीदी, समूह के बने उत्पादों की उत्तराखंड के अलावा अन्य कई प्रदेशों में है मांग

गोबर के उत्पाद से पर्यावरण को बना रहीं इको फ्रेंडली, खुद के साथ दूसरी महिलाओं को दिया स्वावलंबन
विनोद श्रीवास्तव, अमृत विचार। आज भी महिलाओं को घर की दहलीज लांघ कर रोजी रोटी कमाने को ग्रामीण परिवेश में अच्छा नहीं माना जाता है। इस दिशा में घर से लेकर परिवार की बंदिशें हैं। मगर समाज के तानों की परवाह न कर ठाकुरद्वारा विकास खंड की रतूपुरा की शालिनी ने गोबर व जूट के उत्पादों के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है। आज उनके समूह के बनाए उत्पादों की बिक्री न सिर्फ मुरादाबाद बल्कि उत्तराखंड व देश की राजधानी के अलावा हिमाचल व अन्य दूसरे प्रदेशों में भी हो रही है।
उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए संबल बना है। इस सीढ़ी का उपयोग कर गरीब परिवार व कम पढ़ी लिखी महिलाएं भी आर्थिक स्वावलंबन हासिल कर खुद देश के विकास की कड़ी बनी हैं। ऐसी ही हैं ठाकुरद्वारा विकास खंड के रतूपुरा गांव की शालिनी। वैसे तो शालिनी ने स्नातक तक की शिक्षा हासिल की है। लेकिन ग्रामीण परिवेश में रखने के चलते समाज व परिवार की कुछ बेड़ियां उनके पांवों में थी। आर्थिक तंगी से स्वयं व परिवार को जूझते देख उन्होंने समाज के तानों की परवाह किए बिना घर ही दहलीज लांघ दिया। उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से उन्होंने 2021 में अंशिका स्वयं सहायता समूह गठित किया। नाबार्ड के माध्यम से प्रशिक्षण हासिल कर जूट के बैग व अन्य उत्पाद बनाने में दक्षता हासिल की।
इसके बाद सरकार की इस योजना में एक प्रतिशत ब्याज पर ऋण लेकर समूह में और महिलाओं को जोड़कर जूट के बोतल बैग, साइड बैग, स्कूल बैग, शॉपिंग बैग व फाइल बनाना शुरु किया। बाद में इस काम के अलावा उन्होंने गाय के गोबर से उत्पाद बनाने की जानकारी लेकर काम शुरू किया। शालिनी बताती हैं कि ग्रामीण परिवेश के चलते गोबर व जूट का काम शुरू करने की जानकारी होने पर समाज के लोगों के ताने सुनने को मिले। लेकिन, तंगी से जूझने के चलते इनकी परवाह नहीं की और बहनों को जोड़कर विकास भवन में विभाग के अधिकारियों से मिलकर काम को आगे बढ़ाया। आज उनके समूह के बनाए जूट व गोबर से बने उत्पाद की मांग बढ़ रही है।
कभी खुद थीं तंगहाल, आज लखपति दीदी
शालिनी कभी आर्थिक तंगी के चलते चिंता में रहती थीं। लेकिन योजना की जानकारी लेकर जब से उन्होंने घर की दहलीज लांघ कर ठान लिया कि खुद को साबित कर दिखाना है। फिर क्या था न ताने की चिंता व लोगों के द्वारा हतोत्साहित करने की फ्रिक। सिर्फ अपने लक्ष्य को केंद्रित कर काम आगे बढ़ाया। सीमित क्षेत्रफल में खेती करने वाले किसान पति ने भी पत्नी के हौसले को संबल दिया। जिसके दम उनके जीवन की गाड़ी चल निकली और आज वह हर महीने 12-15 हजार रुपये कमाई कर लखपति दीदी बनी हैं। वह बताती हैं कि त्योहारों के सीजन में कमाई 25-50,000 रुपये तक पहुंच जाती है।
गोबर के इन उत्पादों की है बहुत मांग
अंशिका स्वयं सहायता समूह के द्वारा न सिर्फ गोबर से बने उत्पादों के माध्यम से देसी अंदाज को बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि पर्यावरण को भी इको फ्रेंडली बना रही हैं। दिवाली पर उनके समूह के बनाए गणेश लक्ष्मी की मूर्ति की खासी मांग रहती है। वह गोबर से देवी देवताओं की मूर्ति के अलावा समरानी कप, घड़ी, मोमेंटो, एक्यूप्रेशर मशीन आदि बना रही हैं।
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