कासगंज में 200 से ज्यादा बच्चे भीख मांगकर भर रहे पेट, शिक्षा से बनाई दूरी!

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Published By Vikas Babu
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कासगंज, अमृत विचार : बाल भिक्षावृत्ति एक समाजिक बुराई है। यह समस्या उस समय विकराल हो जाती है, जब इस समाजिक बुराई ने व्यवसायिक रूप धारण कर लिया। जिसे रोकने के लिए शासन स्तर पर कड़े कदम उठाये गये हैं। जन सहयोग के बिना ये कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं। जनपद में लगभग 200 से अधिक बच्चे भिक्षावृत्ति में हैं।

भिक्षावृत्ति को समाप्त करने के लिए जनकल्याण कारी योजनाओं को संचालित हैं, लेकिन इसमें जन सहयोग भी जरूरी है। बाल भिक्षुओं की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है। भिक्षु दीन हीन एवं कार्य करने के लिए आयोग्य होने के कारण अपनी आजीविका पाने में असमर्थ होता है तो वह भीख मांगकर अपना पेट भरता है, लेकिन वर्तमान समय में भिक्षावृत्ति ने व्यवसाय का रूप ले लिया है। धार्मिक एवं पर्यटक स्थलों पर भिखारियों की बढ़ती संख्या एक बड़ी समस्या है। जिससे देश की छवि भी धूमिल होती है। बाल भिक्षु वहां आए पर्यटकों के सामने तरह तरह के स्वांग रचा कर भीख मांगते हैं।

एक लाख तक का है जुर्माना
सरकार ने इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने के बाल संरक्षण कानून बनाया। जिसमें भीख मांगना एवं बाल मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया। जिसमें एक लाख रुपये तक के जुर्माने तक का प्रावधान है। साथ ही भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए आश्रय स्थलों को भी निर्माण किया गया लेकिन यह सब दिखावे तक सीमित रहा। जिन बच्चों के हाथों में कलम और दावत होनी चाहिए उन बच्चों के हाथों में भीख का कटोरा है।

यहां के स्थानीय लोगों के अतिरिक्त बाहरी लोग भी आकर भिक्षावृत्ति करते हैं। जिसमें अधिकांश बच्चे शामिल होते हैं। शासन प्रशासन द्वारा भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों को चिन्हित कर शिक्षा से जोड़ना चाहिए- सुनील तिवारी, तीर्थ पुरोहित

समय-समय पर हमें उत्तर प्रदेश सरकार से शासनादेश प्राप्त होता है, जिलाधिकारी के निर्देश पर अभियान चलाकर भिक्षावृत्ति करने वाले और बाल श्रम करने वाले बच्चों की तलाश कर कार्रवाईकी जाती है। मंदिरों व अन्य स्थानों को चिन्हित करके भिक्षावृत्ति व बाल श्रम करने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ा गया है। स्पोंसन योजना के माध्यम से ऐसे बच्चों को 4000 रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं- सौरभ यादव, चाइल्ड लाइन प्रभारी

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