प्रयागराज: सही तथ्यों के आधार पर निरसन अधिनियम के तहत रिट कोर्ट फैसला लेने में सक्षम

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Published By Vishal Singh
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शहरी भूमि (सीलिंग और विनियमन) निरसन अधिनियम, 1999 के तहत कार्यवाही हेतु रिट कोर्ट के क्षेत्राधिकार को स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि विवादित तथ्यों को समझा जा सके और रिट कोर्ट द्वारा सही स्थिति का पता लगाया जा सके तो रिट कोर्ट भूमि के वास्तविक कब्जे के पहलू पर निर्णय ले सकता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि रिट कोर्ट तथ्यों और कानून के सवालों से जुड़ी रिट याचिका पर विचार कर सकता है। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने रामजी और अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। अधिशेष भूमि के कब्जे का निर्धारण जैसे मुद्दे प्रत्येक मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स पर निर्भर करते हैं और आमतौर पर तथ्यों और कानून के मिश्रित प्रश्न शामिल होते हैं जो रिट कोर्ट को ऐसे मामलों से निपटने के लिए सशक्त बनाते हैं। 

मामले के अनुसार याचियों के पिता/ससुर/दादा भोलानाथ के पास इलाहाबाद जिले के एक गांव में कई कृषि योग्य भूमि थी। उनका नाम 1422 फसली वर्ष के खसरा में भी दर्ज था। खाली पड़ी जमीनों के बारे में उनके बयान के आधार पर उनके खिलाफ शहरी भूमि (सीलिंग और विनियमन) अधिनियम, 1976 की धारा 6 (1) के तहत कार्यवाही शुरू की गई। वर्ष 1983 में उनके खिलाफ एकपक्षीय आदेश पारित कर 67,138.12 वर्ग मीटर जमीन को अधिशेष घोषित किया गया। सीलिंग एक्ट की धारा 10 के तहत कार्यवाही शुरू की गई और भोलानाथ को अधिशेष जमीन को सरेंडर करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया, लेकिन भोलानाथ ने जमीन सरेंडर नहीं की और न ही अधिकारियों ने जबरन कब्जा किया। 

वर्ष 2005 में भोलानाथ की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने अधिशेष भूमि सहित संपत्ति पर अपना कब्जा जारी रखा। वर्ष 2015 में अधिकारियों ने याचियों को 30 दिनों के भीतर अधिशेष भूमि खाली करने की धमकी दी, अन्यथा उन्हें जबरन जमीन से बेदखल कर दिया जाएगा। इसके बाद याचियों ने एकतरफा आदेश के खिलाफ  हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दाखिल कर बेदखली से सुरक्षा की मांग की। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसा कोई दस्तावेज या साक्ष्य रिकार्ड पर नहीं लाया गया, जिससे पता चले कि निरसन अधिनियम के लागू होने से पहले कब्जा वास्तव में राज्य सरकार के पास था, साथ ही राज्य अधिशेष भूमि पर अपना कब्ज़ा साबित करने में विफल रहा।

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