प्रयागराज : कैदियों के बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी अधिकारों की रक्षा हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेलों में अपने माता-पिता के साथ रह रहे बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी अधिकारों की रक्षा हेतु विस्तृत दिशा निर्देश देते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि जेल में कैदियों के साथ रहने वाले उनके बच्चे भी कारावास की स्थिति में रहते हैं। वे जेल के नकारात्मक प्रभावों के प्रति भी अतिसंवेदनशील होते हैं।

ऐसे बच्चों के अधिकारों की उपेक्षा राज्य की असफलता और न्यायिक प्रक्रिया की अपर्यतता को दर्शाती है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 15(3), 21(ए), 39(ए) और (एफ) तथा 45 का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र विकास को सुनिश्चित करना राज्य का सर्वोपरि कर्तव्य होना चाहिए, जो अपने माता-पिता के साथ जेल का जीवन काट रहे हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य को जेल में ऐसा वातावरण विकसित करना चाहिए, जिससे बच्चों को संविधान के अनुच्छेद 21 और 21(ए) के तहत अधिकार प्राप्त हो सकें। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने अपने सौतेले बेटे की हत्या करने वाली आरोपी श्रीमती रेखा की जमानत याचिका खारिज करते हुए की। याची पर अपने नाबालिग सौतेले बच्चे की हत्या कर शव को पानी की टंकी में छिपाने का आरोप है, जिसकी बरामदगी उसकी निशानदेही पर ही हुई थी।

इसके बाद याची के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन मोदीनगर, गाजियाबाद में प्राथमिकी दर्ज करवाई गई। मालूम हो कि 16 अक्टूबर 2023 से वह जेल में निरुद्ध है। याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याची की 5 वर्षीय बेटी भी उसके साथ जेल में रह रही है, जिससे उस बच्ची के संवैधानिक और विधिक अधिकारों- विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 (ए) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का उल्लंघन हो रहा है। हालांकि राज्य की ओर से उपस्थित महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सरकार न्यायालय द्वारा दिए गए पूर्व निर्देशों के अनुसार जेलों में रह रहे बच्चों के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्था कर रही है।

कोर्ट ने माना कि याची को उसके सौतेले बेटे की हत्या का आरोपी मानते हुए उसे जमानत नहीं दी जा सकती है, लेकिन आवेदिका की बेटी और समान स्थिति वाले अन्य बच्चों की भलाई के लिए कोर्ट ने विशेष निर्देश देते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, गौतमबुद्ध नगर के सचिव को जिला परिवीक्षा अधिकारी, गाजियाबाद के साथ मिलकर इस आदेश से 2 महीने के भीतर बच्ची के लिए देखभाल योजना तैयार करने का उत्तरदायित्व सौंपा। इसके अलावा बच्ची का दाखिला जेल परिसर के बाहर किसी अन्य स्कूलों में करवाने का सुझाव दिया और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को देखभाल योजना के क्रियान्वयन पर नियमित रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। इसके अलावा जेल में रह रहे बच्चों के समग्र कल्याण के लिए मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश को अंतर विभागीय बैठकें आयोजित करने के लिए कहा। अंत में कोर्ट ने संवैधानिक मूल्यों, अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और विधिक प्रावधानों का संयोजन करते हुए बच्चों के हितों की रक्षा को सर्वोपरि बताया।

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