प्रयागराज: बिना कारण बताए गिरफ्तारी असंवैधानिक- हाईकोर्ट

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना उचित कारण बताए केवल एक मुद्रित प्रोफार्मा के आधार पर अभियुक्त की गिरफ्तारी को गैर-कानूनी बताते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 50 (बीएनएसएस की धारा 47) के तहत गिरफ्तारी के आधार प्रस्तुत नहीं किए गए हैं, बल्कि केवल एक गिरफ्तारी ज्ञापन दे दिया गया है। इस गिरफ्तारी ज्ञापन में भी याची की गिरफ्तारी के कारणों के बारे में कोई कॉलम नहीं है।
ऐसा प्रतीत होता है कि यह पूरा मामला केवल पक्षकारों के बीच विवाद से जुड़ा है। यह सीआरपीसी की धारा 50 के तहत जनादेश का स्पष्ट-गैर अनुपालन है, साथ ही जिस मजिस्ट्रेट के समक्ष गिरफ्तार व्यक्ति को प्रस्तुत किया गया, उसे सीआरपीसी की धारा 50-ए की उप-धारा (दो) और (तीन) का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। इस प्रकार मौजूदा रिमांड आदेश यांत्रिक है और न्यायिक हिरासत की आवश्यकता के संबंध में कोई भी स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं करता है।
अतः न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने मंजीत सिंह उर्फ इंदर उर्फ मनजीत सिंह चाना की याचिका को स्वीकार कर आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया। इसके साथ ही इस आदेश की प्रति रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को प्रेषित करने के निर्देश जारी किए और बीएनएसएस की धारा 47 और 48 के अनुपालन हेतु सभी पुलिस आयुक्तों, पुलिस अधीक्षकों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को एक परिपत्र भी जारी करने का निर्देश दिया। मालूम हो कि याचिका में शामिल मुख्य मुद्दा आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन मिलक, रामपुर में दर्ज प्राथमिकी में उल्लिखित आरोपों से संबंधित है।
याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया में अवैधता और रिमांड कार्यवाही के दौरान प्रक्रियात्मक कमियां हैं। यह एक मुद्रित प्रोफार्मा था, जिसमें गिरफ्तारी के आधार या कारणों को निर्दिष्ट करने वाला कोई कॉलम नहीं था। इसके अलावा गिरफ्तारी के समय याची को ना तो गिरफ्तारी के कारण और ना ही आधार के बारे में लिखित रूप से कुछ बताया गया था। गिरफ्तारी के तुरंत बाद याची को 26 दिसंबर 2024 को रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया और एक मुद्रित रिमांड आदेश के माध्यम से न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
याची के अधिवक्ता ने गिरफ्तारी को संविधान के अनुच्छेद 22 का उल्लंघन बताते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तारी से बचने तथा अपनी गिरफ्तारी के कारणों को जानने का अधिकार है। याची के अधिवक्ता ने बीएनएसएस की धारा 47 को स्पष्ट करते हुए बताया कि बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकारी उसे तुरंत अपराध या गिरफ्तारी के अन्य कारणों के बारे में पूरी जानकारी देगा।
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