AIIMS के डॉक्टर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में नहीं बन सकते फैकल्टी, यह नियम बन रहा बाधा

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (DrRMLIMS) में चल रही फैकल्टी भर्ती प्रक्रिया में एम्स के डॉक्टर हिस्सा नहीं ले सकते। AIIMS, PGI चंडीगढ़, JIPMER जैसे बड़े संस्थानों के अनेक योग्य डॉक्टर्स सिर्फ एक शैक्षणिक शर्त के कारण लोहिया में आवेदन की दौड़ से बाहर हो सकते हैं। इतना ही नहीं, यहां के डॉक्टर इस नियम के चलते किसी भी राजकीय मेडिकल कॉलेज में आवेदन नहीं कर सकते, जिससे अच्छे डॉक्टरों का संकट भी हो सकता है।

यह शर्त है

बताया जा रहा है कि Basic Course in Medical Education Technology (BCMET) और Basic Course in Biomedical Research (BCBR) का पूर्व प्रशिक्षण, जो नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) के नियमों के तहत अनिवार्य किया गया है। परंतु यह कोर्स AIIMS एवं अन्य केंद्रीय संस्थानों में न नियुक्ति के लिए आवश्यक है, न ही वहां उपलब्ध। साथ ही, NMC द्वारा निर्धारित संस्थानों में भी यह कोर्स वर्ष में केवल कुछ बार सीमित सीटों (प्रत्येक बैच में 30) के साथ कराया जाता है, और वहां भी AIIMS और अन्य केंद्रीय संस्थानों के डॉक्टर्स को नामांकन नहीं मिल पा रहा।

डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान के निदेशक, जो स्वयं AIIMS पटना से हैं, उन्होंने भी इस स्थिति को गंभीरता से समझते हुए NMC को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि ऐसे योग्य डॉक्टर्स को नियुक्ति की अनुमति दी जाए और वे नियुक्ति के 6 माह के भीतर ये कोर्स पूरा कर लें, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक उत्तर नहीं आया है।

इस स्थिति के विरुद्ध AIIMS के डॉक्टर्स द्वारा हाई कोर्ट लखनऊ में याचिका दाखिल की गई है, जहां advocate कार्तिकेय दुबे ने यह मामला उठाया। न्यायालय ने इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए NMC से लचीलापन दिखाने और व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया है।

इसके अलावा सूत्रों की मानें तो डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान की भर्ती प्रणाली में कुछ तकनीकी समस्याएं भी सामने आई हैं, जिसमें पोर्टल का समय से पहले बंद होना, अंतिम दिन सहायता का अभाव, और एक से अधिक पदों पर आवेदन की असमर्थता, जिसने स्थिति को और जटिल बना दिया।

जानकारों की मानें तो यदि यह मुद्दा शीघ्र हल नहीं हुआ, तो लोहिया संस्थान जैसे प्रमुख चिकित्सा केंद्र देश के श्रेष्ठ, प्रशिक्षित और अनुभवी डॉक्टर्स की सेवाओं से वंचित रह सकते हैं, जिसका प्रभाव सीधे चिकित्सा शिक्षा, शोध और मरीजों की देखभाल पर पड़ सकता है। न्यायालय में इस याचिका की सुनवाई इसी माह प्रस्तावित है।

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