कानपुर : भारत में जल्द बनने लगेंगे रोजाना हजारों ड्रोन, आपरेशन सिंदूर के बाद सैन्य जरूरत को देखते हुए रणनीतिक रूप से आगे आई कंपनियां 

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Published By Vinay Shukla
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Drones will be made soon: पाकिस्तान के खिलाफ हाल ही में भारत के आपरेशन सिंदूर के बाद दोनों देशों के बीच हुए संघर्ष में ड्रोन की महत्ता ने भविष्य में युद्ध की संभावना, सीमाओं की सुरक्षा और सामरिक आवश्यकताओं के मद्दे नजर विभिन्न प्रकार और क्षमताओं वाले ड्रोन विकसित करने की तरफ तेजी से ध्यान खींचा है। इसी के बाद जिस तरह से इस काम में तेजी आई है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में भारत प्रतिदिन हजारों ड्रोन बनाने की क्षमता हासिल करने वाला है।    

आईआईटी कानपुर में ड्रोन निर्माण में दो प्रमुख स्टार्टअप रोटरी में एंड्योरएयर और फिक्स्ड विंग में वीयू डायनेमिक्स ने नाम कमाया है। इनमें रक्षा बलों के लिए ड्रोन बनाने वाले वीयू डायनेमिक्स को हाल ही में इंदौर स्थित प्रकाश एस्फाल्टिंग्स एंड टोल हाईवेज (पॉथ) ने अधिग्रहीत किया है। पॉथ इंदौर के पास ड्रोन फैक्ट्री स्थापित कर रहा है। जानकारी के मुताबिक वीयू डायनेमिक्स को रक्षा क्षेत्र का बड़ा ऑर्डर मिला है और उसका कहना है कि हम अगले एक माह में प्रतिदिन 200 ड्रोन बनाने में सक्षम हो जाएंगे, जिसे तेजी से और आगे बढ़ाया जाएगा। उधर, लिंक्डइन पर अपनी पोस्ट में पॉथ ने कहा है कि हम भारतीय सेना के लिए सामरिक ड्रोन और उन्नत प्रणालियों का निर्माण कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य युद्ध के सैन्य मुख्यालय में अत्याधुनिक विनिर्माण सुविधा स्थापित करके क्षमता, चपलता और स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देना है। 

आईआईटी कानपुर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. सुब्रह्मण्यम सदरला की देखरेख में इनक्यूबेट किए गए स्टार्ट अप वीयू डायनेमिक्स ने सटीक हमलों के लिए आत्मघाती ड्रोन विकसित किए हैं। इसमें कामिकेज ड्रोन को आसान परिवहन के लिए फोल्डेबल फिक्स्ड विंग संरचना प्रदान की गई है। इसका उन्नत नेविगेशन जीपीएस-निषेधित वातावरण में भी एआई-आधारित एल्गोरिदम का उपयोग करके संचालित होता है। यह उच्च रिजॉल्यूशन निगरानी वाले कैमरे से लैस है जो दुश्मन की स्थिति का रीयल टाइम दृश्य प्रदान करता है। स्टेल्थ टेक्नोलॉजी इसे गुप्त अभियानों के दौरान रडार से बचने की क्षमता प्रदान करती है। इसे 4.5 किमी तक की ऊंचाई पर दिन और रात के मिशन के लिए डिजाइन किया गया है। इस ड्रोन को कैटापुल्ट या कैनिस्टर सिस्टम से लॉन्च किया जा सकता है।  

गुलेल की तरह होता है कैटापुल्ट सिस्टम 
कैटापुल्ट सिस्टम वास्तव में पुराने जमाने की गुलेल जैसा होता है। इस लॉन्चिंग सिस्टम के जरिए ड्रोन को आकाश की ओर उछाला जाता है। एक बार हवा में जाने के बाद ड्रोन के इंजन काम करना शुरू कर देते हैं। देश में कई कैटापुल्ट लॉन्च किए गए फिक्स्ड-विंग ड्रोन हैं। इनमें अल्फा डिफेंस का स्काई स्ट्राइकर भी है, जिसका इस्तेमाल आपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान स्थित लक्ष्यों पर हमला करने के लिए किया गया था।

दुश्मन के इलाके में ग्रेनेड फेंकने वाले ड्रोन बनाए
रोटरी विंग ड्रोन दुश्मन के इलाके में ग्रेनेड फेंक सकता है। इसे प्रोफेसर अभिषेक और उनके छात्रों के स्टार्टअप एंड्योरएयर ने विकसित किया है। यह छोटे आकार के ड्रोन अमेरिकी चिनूक हेलीकॉप्टर से मिलते जुलते हैं। इस ड्रोन में दोनों छोर पर दो रोटर विपरीत दिशाओं (घड़ी की दिशा और उसके विपरीत) में घूमते हैं। इससे उच्च लिफ्ट प्राप्त होती है। यह टेंडम रोटर मूल रूप से  हेलीकॉप्टर की अवधारणा पर आधारित है। एंड्योरएयर के टेंडम रोटर ड्रोन दो वेरिएंट  सबल 20 और सबल 40 हैं। इनमें संख्या किलोग्राम में उनकी पेलोड क्षमता को दर्शाती है। कंपनी ने एक टिल्ट-रोटर ड्रोन भी बनाया है, जिसमें चार रोटर लगाए गए हैं। इससे ड्रोन एक छोटे बाइप्लेन जैसा दिखता है। अर्नोल्ड श्वार्जनेगर की फिल्म ट्रू लाइज में इस तरह के विमान दिखाए गए थे। 

जहाजों या ट्रकों जैसी गतिमान वस्तुओं पर उतर सकेंगे ड्रोन
अभिषेक और उनकी टीम ऐसे ड्रोन को बनाने में लगभग सफल हो गई है, जो जहाजों या ट्रकों जैसी गतिमान वस्तुओं पर उतर सकें। इसके पीछे सिद्धांत यह है कि जब मानव द्वारा संचालित हेलीकॉप्टर चलते हुए जहाजों पर उतर सकते हैं, तो एक मानव रहित ड्रोन को भी कंप्यूटर विजन और एआई के जरिए गतिमान वस्तु पर नीचे उतारा जा सकता है। 

तुर्किए जैसे बड़े ड्रोन बनाना हमारे लिए बड़ी बात नहीं
एंड्योरएयर के अभिषेक और वीयू डायनेमिक्स के प्रोफेसर सुब्रह्मण्यम सदरला का मानना है कि यदि इस्तेमाल और बिक्री सुनिश्चित हो तो भारत के लिए तुर्की के बेराकटार टीबी-2 ड्रोन जैसे बड़े ड्रोन विकसित करना कोई बड़ी बात नहीं है।

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