प्रयागराज: कृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में श्रीजी राधा रानी को पक्षकार बनाने की मांग वाली याचिका खारिज

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में देवी-श्रीजी राधा रानी वृषभानु कुमारी वृंदावनी (देवी राधा) को पक्षकार बनाने की मांग वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि राधा रानी ना तो मामले में आवश्यक पक्ष हैं और ना ही उचित पक्ष हैं और उनके शामिल होने से मुकदमे की संरचना बदलने की संभावना है। 

कोर्ट ने माना कि मुकदमा नंबर 7 में उन्हें पक्षकार बनाना समीचीन नहीं होगा। आवेदक का दावा पौराणिक दृष्टांत पर आधारित है, जिन्हें आमतौर पर सुना हुआ साक्ष्य माना जाता है, क्योंकि ऐसे दृष्टांत कथा पर आधारित होते हैं, ना कि प्रत्यक्ष गवाही पर। वादी नंबर एक के साथ विवादित संपत्ति के संयुक्त धारक के रूप में आवेदक का दावा विभिन्न पुराणों और संहिताओं में कुछ संदर्भों पर आधारित है। आवेदक द्वारा उठाए गए दावे के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है कि आवेदक 13.37 एकड़ की विवादित भूमि का संयुक्त धारक है और आवेदक की संपत्ति भी वादी संख्या एक द्वारा भगवान कृष्ण के जन्म स्थान के रूप में दावा की गई संपत्ति में शामिल है। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि राधा रानी को पक्षकार बनाने से विवाद का अनावश्यक विस्तार होगा, जिससे संभावित रूप से देरी और भ्रम की स्थिति पैदा होगी। अतः कोर्ट ने अभियोग आवेदन को खारिज करते हुए मामले की अगली सुनवाई आगामी 4 जुलाई 2025 को सुनिश्चित कर दी।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकलपीठ ने श्री भगवान श्री कृष्ण लाला विराजमान और चार अन्य द्वारा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के खिलाफ दाखिल आवेदन खारिज करते हुए पारित किया, जिसमें श्री जी राधा रानी की ओर से अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह बिशन ने रीना एन सिंह के माध्यम से सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 10 के तहत आवेदन दाखिल कर मूल वाद में संयुक्त वादी के रूप में शामिल होने की मांग की थी। मुख्य वाद मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान पर शाही ईदगाह मस्जिद के कथित अतिक्रमण को चुनौती देते हुए दाखिल किया गया है। वर्तमान अभियोग याचिका में आवेदक ने दावा किया कि राधा रानी भगवान कृष्ण से अविभाज्य रूप से जुड़ी हैं और विवादित 13.37 एकड़ भूमि की संयुक्त हकदार हैं ,उन्होंने ब्रह्म वैवर्त पुराण, नारद पंचरात्र संहिता और स्कंद पुराण सहित शास्त्रों के संदर्भों का हवाला देते हुए खुद को कृष्ण की आत्मा के रूप में चित्रित किया और इस प्रकार स्वामित्व अधिकारों के साथ सह-देवता बताया।

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