"आर्य समाज के नाम पर चल रहा था विवाह का धंधा!" HC का सख्त रुख- "वर-वधू की उम्र और धर्म देखे बिना, शादी कैसे वैध मानी जाए?"

Amrit Vichar Network
Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज, अमृत विचार : आर्य समाज मंदिर, जिसे कई लोग वैवाहिक संस्कारों के लिए सुरक्षित और सुलभ विकल्प मानते हैं, आज एक बड़े विवाद के घेरे में है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान फर्जी आर्य समाज सोसाइटीज़ के जरिए हो रहे कथित अवैध विवाहों को लेकर गहरी चिंता जताई है और प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) को जांच का आदेश दे दिया है।

शादी, नाबालिग लड़की और एक ‘जाली प्रमाणपत्र’

यह मामला शुरू होता है सोनू उर्फ शाहनुर नामक युवक से, जिसने दावा किया कि उसने 14 फरवरी 2020 को एक लड़की से प्रयागराज के आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था। लेकिन जब मामला अदालत में पहुँचा, तो सामने आए चौंकाने वाले तथ्य: हाईस्कूल सर्टिफिकेट के अनुसार लड़की शादी के वक्त नाबालिग थी, दोनों अलग-अलग धर्म से थे, लेकिन धर्म परिवर्तन नहीं हुआ। विवाह का जो प्रमाणपत्र पेश किया गया, वह संभावित रूप से फर्जी था

न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार बोले – "शादी नहीं, छल था ये!"

हाईकोर्ट ने कहा: “ऐसे विवाह, जहां वर-वधू की आयु, सहमति और धर्म की पुष्टि तक नहीं होती वो न सिर्फ गैरकानूनी हैं, बल्कि सामाजिक धोखा भी हैं। यदि ये प्रमाणपत्र आर्य समाज संस्था की तरफ से जारी हुआ है, तो उनकी भूमिका पर भी सवाल उठते हैं।”न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी जांच पुलिस उपायुक्त स्तर से नीचे नहीं होनी चाहिए।

याचिका खारिज, अब नए सिरे से सुनवाई 29 अगस्त को

शाहनुर की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 363, 366, 376 और पॉक्सो एक्ट की धाराएं उचित हैं। विवाह नाबालिग लड़की से जबरन और बिना धर्म परिवर्तन के हुआ है। ऐसे मामले सिर्फ प्यार या सहमति के दायरे में नहीं आते, बल्कि कानूनी अपराध हैं। 

आर्य समाज का नाम लेकर बन रहा था ‘विवाह उद्योग’?

सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि "प्रदेश में कुछ लोग ‘आर्य समाज’ के नाम का दुरुपयोग कर रहे हैं। न उम्र देखी जा रही, न धर्म-बस विवाह प्रमाणपत्र थमा दिया जाता है।" आज का सवाल यही है कि क्या शादी, सिर्फ एक कागज़ का खेल बन गया है? क्या आर्य समाज जैसे पवित्र संस्थानों की छवि अब धंधेबाजों ने बिगाड़ दी है? ऐसे लोगों को  कानून का डर खत्म हो गया है? 

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