हाईकोर्ट ने जताई आपत्ति, कहा- पुलिस को मनमाने ढंग से हिस्ट्रीशीट खोलने का निरंकुश अधिकार नहीं

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आठ साल पुराने केस में हिस्ट्रीशीट फिर से खोलने पर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट किया कि पुलिस किसी व्यक्ति की पसंद या नापसंद के आधार पर उसकी हिस्ट्रीशीट नहीं खोल सकती। कोर्ट ने कहा कि हिस्ट्रीशीट दर्ज करने या निगरानी रजिस्टर में नाम दर्ज करने के लिए ठोस और विश्वसनीय सामग्री आवश्यक है, अन्यथा यह नागरिक की मौलिक स्वतंत्रता में अनुचित हस्तक्षेप होगा। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति संतोष राय की खंडपीठ ने मोहम्मद वजीर की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार सिद्धार्थनगर निवासी मोहम्मद वजीर के खिलाफ 2016 में उ.प्र. गोहत्या अधिनियम के तहत एक मामला दर्ज हुआ था।

इसके बाद से उन पर कोई नई एफआईआर, एनसीआर या शिकायत दर्ज नहीं हुई। इसके बावजूद पुलिस ने उनकी हिस्ट्रीशीट खोल दी। जब उन्होंने हिस्ट्रीशीट बंद करने का आवेदन दिया तो एसपी ने 23 जून, 2025 को इसे खारिज कर दिया। याची के अधिवक्ता का तर्क है कि आठ साल पुराने केवल एक मामले के आधार पर हिस्ट्रीशीट खोलना पूरी तरह गलत है और यह पुलिस विनियमावली के पैरा 228, 229, 231, 233 आदि का उल्लंघन है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सामान्यतः हिस्ट्रीशीट केवल उन्हीं व्यक्तियों की खोली जानी चाहिए, जिनका पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड हो या जिन्हें आदतन अपराधी माना गया हो। केवल गोहत्या अधिनियम के तहत आठ साल पुराना मामला किसी को “आदतन अपराधी” सिद्ध नहीं करता है। 

पुलिस विनियमों का दुरुपयोग नागरिकों पर मनमाने तरीके से निगरानी रखने के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने एसपी द्वारा किसी ठोस सामग्री के उपलब्ध न होने पर भी याची के आवेदन को अस्वीकार करना “बहुत लापरवाह रवैया" बताया है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि पुलिस विनियमों का कानूनी बल अवश्य है, लेकिन इन्हें नागरिकों की स्वतंत्रता कुचलने के लिए नहीं प्रयोग किया जा सकता। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वजीर के खिलाफ निगरानी का कोई औचित्य नहीं है और हिस्ट्रीशीट खोलने के समर्थन में कोई सबूत भी मौजूद नहीं है। परिणामस्वरूप कोर्ट ने हिस्ट्रीशीट रद्द करते हुए याचिका स्वीकार कर ली।

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