रेल हादसे में अनाथ हुए नाबालिग को अनुग्रह राशि न देना ‘नीति का मज़ाक’: हाईकोर्ट

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक नाबालिग याची को अनुग्रह राशि देने से इनकार करने पर उत्तर प्रदेश राज्य प्राधिकारियों की कड़ी निंदा की है। कोर्ट ने कहा कि मृत्यु के ‘प्रमाण के अभाव’ का हवाला देना तब बिल्कुल अस्वीकार्य है, जब केंद्र सरकार दुर्घटना की पुष्टि कर अपने हिस्से का भुगतान पहले ही कर चुकी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में प्रशासन की संवेदनहीनता न केवल नीति की भावना के विपरीत है, बल्कि पीड़ितों के अधिकारों को भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।

न्यायमूर्ति अजीत कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने आदर्श पांडेय उर्फ अंश की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य के रुख को “नीति का मज़ाक” करार दिया। याची, जो एक नाबालिग अनाथ है, उसने अपने माता-पिता की रेलवे दुर्घटना में मृत्यु के बाद केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा घोषित अनुग्रह राशि जारी करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल की। केंद्र सरकार ने मृतकों के आश्रितों के लिए 5 लाख रुपए की राहत राशि घोषित की थी। मुख्यमंत्री ने भी समान आर्थिक सहायता की घोषणा की थी।

कार्यवाही के दौरान केन्द्र सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल कर पुष्टि की गई कि याची का भुगतान पहले ही कर दिया गया है। इसके विपरीत प्रदेश सरकार ने दावा किया कि मृत्यु का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, इसलिए राशि नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने इस तर्क को “तर्कहीन और अस्वीकार्य” बताते हुए कहा कि जब केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर भुगतान हो चुका है, तो वही दस्तावेज राज्य सरकार के लिए भी भुगतान का आधार बनने चाहिए थे।

कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों के रवैये पर असंतोष जताते हुए कहा कि यह राज्य विभाग में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों द्वारा नीति का मज़ाक उड़ाने जैसा है…... राज्य के अधिकारियों से जिम्मेदाराना आचरण की अपेक्षा की जाती है। अंत में कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट, जौनपुर को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार के हलफनामे के आधार पर आवश्यक कार्यवाही कर बकाया अनुग्रह राशि तुरंत जारी करें। इसके साथ ही सुनवाई की अगली तारीख यानी 6 जनवरी 2026 तक अनुपालन हलफनामा दाखिल करना अनिवार्य बताया, अन्यथा डीएम को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा।

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