इस दौर की हम अस्ल ज़रूरत पे कहेंगे, अब शेर जो कहेंगे मोहब्बत पे कहेंगे... युवा शायरों के कलाम से झूम उठा लखनऊ
लखनऊ, अमृत विचार : अदब और तहजीब के शहर लखनऊ में सोमवार को एक बेहद ही खूबसूरत और रूहानी महफिल केकेसी कॉलेज में सजी। मौका था प्रसिद्ध शायर और ग़ज़लकार कृष्ण बिहारी “नूर” की जन्म जयंती का। आस द कल्चरल सोसायटी” और निशंक सांस्कृतिक क्लब के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित शानदार मुशायरे “ब याद ए कृष्ण बिहारी नूर” में शहर के प्रमुख कवि, शायर और साहित्य प्रेमियों ने हिस्सा लिया।
इस दौरान सजी महफिल में शाश्वत सिंह “दर्पण” ने कहा कि “हर इक त्यौहार पे सबको दिलाते हैं नए कपड़े, मगर अपने लिए पापा खरीदारी नहीं करते।” मयंक शुक्ला ने प्रस्तुति दी, “फोटोग्राफर मुस्काने को कहता है, हमको पूरी जान लगानी पड़ती है...” दुर्गेश शुक्ला ने कहा, “इस दौर की हम अस्ल ज़रूरत पे कहेंगे, अब शेर जो कहेंगे मोहब्बत पे कहेंगे।” पीयूष अग्निहोत्री ने सुनाया, “जब जुल्म बढ़ रहे थे, तो कुछ नहीं किया, हम सिर्फ आसमां की तरफ़ देखते रहे...” अनुज पाण्डेय “अब्र” ने कहा, “मुझे मिलती भी कैसे बताओ कामयाबी, ज़रा सा झूठ बोलूँ तो लहज़ा काँपता है...”
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. अंशुमाली शर्मा ने की, जबकि संचालन की जिम्मेदारी डॉ. बलवंत सिंह ने संभाली। सत्र की शुरुआत दीप प्रज्वलन और नूर साहब के चित्र पर माल्यार्पण से हुई। वक्ताओं ने नूर साहब के जीवन, व्यक्तित्व और साहित्यिक योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। मुख्य वक्ताओं ने कहा कि नूर साहब की शायरी इंसानियत की सच्ची आवाज है, जो आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने हिंदी-उर्दू की गंगा-जमुनी तहजीब को अपनी लेखनी से नई दिशा प्रदान की।
कार्यक्रम में अनुज पाण्डेय “अब्र”, दुर्गेश शुक्ला, डॉ. सुरभि सिंह, अम्बरीश ठाकुर, डॉ. सुधा मिश्रा, श्रवण कुमार, शाश्वत सिंह “दर्पण”, पीयूष अग्निहोत्री, वन्दना वर्मा “अनम”, शादाब जावेद, उमर सिद्दीकी, दर्द फैज़ खान, मयंक शुक्ला, रश्मि शरद, प्रभात यादव, तलहा लखनवी, कोमल बाजपेई और प्रिया सिंह सहित कई रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से नूर साहब को श्रद्धांजलि दी। संस्था के उपाध्यक्ष डॉ. मनोज सिंह की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की। सभी प्रतिभागियों की रचनाओं का श्रोताओं ने तालियों से स्वागत किया।
