Child Mental Health : माता-पिता के झगड़े बच्चों के मन को पहुंचा रहे गहरे घाव... मानसिक सेहत पर गहरा असर, नई रिसर्च में हुए खुलासे

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Published By Muskan Dixit
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केप टाउन से आई एक ताजा स्टडी बता रही है कि दुनिया के कोने-कोने में लाखों बच्चे हिंसा की छांव में बड़े हो रहे हैं। यह हिंसा कभी घर की चारदीवारी में तो कभी मोहल्ले की गलियों में नजर आती है। कुछ बच्चे इसका सीधा शिकार बनते हैं, तो कुछ अपनों के बीच झगड़ों या इलाके में फैली अशांति से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। किसी भी तरह, हिंसा का यह माहौल बच्चों की सेहत पर भारी पड़ता है।

रिसर्च बताती है कि मानसिक परेशानियां स्कूल जाने से बहुत पहले, बचपन की दहलीज पर ही शुरू हो जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआती उम्र में हिंसा का सामना करने वाले बच्चों पर इसका असर उम्रभर रह सकता है। हम न्यूरोसाइंस और बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले शोधकर्ता हैं, और कम-मध्यम आय वाले देशों में छोटे बच्चों पर हिंसा के शुरुआती प्रभावों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस लेख में हम 20 देशों की स्टडीज की समीक्षा और दक्षिण अफ्रीका के हजारों बच्चों से मिले नए डेटा के आधार पर निष्कर्ष साझा कर रहे हैं। नतीजे चौंकाने वाले हैं: जितने देशों का हमने विश्लेषण किया, उन सबमें बच्चों के लिए हिंसा का अनुभव बेहद सामान्य है, और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बोझ बचपन में ही महसूस होने लगता है। इसे रोकने के लिए परिवार से लेकर सरकार तक हर स्तर पर फौरी कदम उठाने होंगे।

रिसर्च में क्या खामियां थीं?

बचपन का शुरुआती दौर (जन्म से 8 साल तक) भावनात्मक, सामाजिक और दिमागी विकास के लिए सबसे अहम होता है। अगर इस उम्र में मानसिक या सोचने-समझने की दिक्कतें शुरू हो जाएं, तो वे किशोरावस्था और बड़े होने पर भी साथ चलती हैं। मगर कम और मध्यम आय वाले देशों में छोटे बच्चों पर हिंसा के असर की जानकारी बहुत कम है, जबकि यहीं हिंसा की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। ज्यादातर स्टडीज बड़े बच्चों या टीनएजर्स पर फोकस करती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए हमने उपलब्ध डेटा को इकट्ठा किया और दक्षिण अफ्रीका में बच्चों के एक बड़े ग्रुप पर नया सर्वे किया। यह काम सह-शोधकर्ता लुसिंडा की पीएचडी का मुख्य हिस्सा था। हमने बच्चों की जिंदगी में साढ़े चार साल की उम्र तक हुई अलग-अलग तरह की हिंसा की घटनाओं को ट्रैक किया और पांच साल की उम्र में उनकी मेंटल हेल्थ का मूल्यांकन किया।

हमें क्या मिला?

दुनिया भर में छोटे बच्चों का हिंसा से सामना होना बेहद कॉमन है। 20 देशों के 27,643 बच्चों पर आधारित 27 स्टडीज में 70% से ज्यादा मामलों में पाया गया कि दुर्व्यवहार, घरेलू मारपीट या युद्ध जैसी स्थितियों का शिकार होने वाले बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है। दक्षिण अफ्रीका के डेटा में तो 4.5 साल की उम्र तक 83% बच्चों ने किसी न किसी रूप में हिंसा झेली थी। यहां के आंकड़े बताते हैं कि जितनी ज्यादा हिंसा का सामना, उतने ही गंभीर मानसिक लक्षण – जैसे चिंता, डर, उदासी (अंदरूनी समस्याएं) और गुस्सा, बेकाबू व्यवहार, नियम तोड़ना (बाहरी समस्याएं)।

 पब्लिक हेल्थ के लिए बड़ी चुनौती

ये नतीजे एक विशाल स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करते हैं। हिंसा का असर स्कूल शुरू होने से पहले ही नजर आने लगता है, यानी औपचारिक पढ़ाई से बहुत पहले विकास पर ब्रेक लग जाता है। पांच साल की उम्र से ही मानसिक जोखिम साफ दिखते हैं, इसलिए स्कूल जाने तक इंतजार करना गलत रणनीति होगी। हस्तक्षेप को बहुत पहले शुरू करना पड़ेगा।

आगे का रास्ता क्या?

हकीकत कड़वी है: कम-मध्यम आय वाले देशों में शुरुआती बचपन में हिंसा हर जगह फैली है, और छोटे बच्चों की मेंटल हेल्थ पर इसका सीधा असर पड़ता है। इसे काबू करने के लिए परिवार, लोकल कम्युनिटी, हेल्थ सिस्टम और पॉलिसी मेकर्स – सबको मिलकर तुरंत एक्शन लेना होगा। आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित, स्वस्थ समाज बनाने की कुंजी यही है – शुरुआती सुरक्षा और भरपूर सपोर्ट।

 

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