आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने हासिल बड़ी उपलब्धि, सूजन के लिये विकसित की पॉलिमरिक नैनोमेडिसिन

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Published By Deepak Mishra
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वाराणसी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग स्थित ट्रांसलेशनल नैनोमेडिसिन फॉर थेरेप्यूटिक एप्लीकेशंस लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल की है। टीम ने सूजन से संबंधित बीमारियों के उपचार और प्रबंधन के लिए एक अभिनव पॉलिमरिक नैनोमेडिसिन विकसित की है, जो वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ते स्वास्थ्य संकट के समाधान की दिशा में आशाजनक कदम है।

सूजन संबंधी बीमारियां विश्व भर में सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करती हैं। दीर्घकालिक सूजन (क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन) रूमेटॉइड आर्थराइटिस, इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज, सोरायसिस और सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस जैसी गंभीर स्थितियों की प्रमुख वजह है। यदि इनका समय पर उपचार न किया जाए, तो ये ऊतकों को क्षति पहुंचाती हैं, अंगों की कार्यक्षमता कम करती हैं और कई बार बहु-अंग विफलता जैसी स्थितियां पैदा कर मृत्यु का जोखिम बढ़ा देती हैं।

इसके अलावा, हृदय रोग, कई प्रकार के कैंसर, मधुमेह, गुर्दा रोग, नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज, ऑटोइम्यून बीमारियां तथा न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सूजन के कारणों की सटीक पहचान अत्यंत जटिल होती है, क्योंकि ये बाहरी कारकों (जैविक या रासायनिक) अथवा आंतरिक कारणों (जैसे आनुवंशिक परिवर्तन) से उत्पन्न हो सकती है।

ऐसे रोगियों में सूजन संबंधी बायोमार्कर्स का स्तर अत्यधिक पाया जाता है, जो प्रभावी उपचारों की आवश्यकता को और बल देता है। इसी महत्वपूर्ण आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आईआईटी (बीएचयू) के प्रो. प्रदीप पाईक के नेतृत्व में शोध दल ने एक पॉलिमरिक नैनोमेडिसिन विकसित की है, जिसने प्री-क्लीनिकल प्रयोगों में उल्लेखनीय प्रभावशीलता दिखाई है।

प्रो. पाईक के अनुसार यह नैनोमेडिसिन बहुत कम मात्रा में ही उच्च चिकित्सकीय प्रभाव प्रदान करती है, इम्यून-सेंसिटिव है और सूजन से संबंधित विविध विकारों के खिलाफ मजबूत सुरक्षा प्रदान करती है। यह रूमेटॉइड आर्थराइटिस तथा सिस्टमिक इन्फ्लेमेशन जैसी तीव्र सूजन स्थितियों में प्रभावी वैकल्पिक उपचार साबित हो सकती है तथा हृदय संबंधी जटिलताओं, कैंसर, मधुमेह, गुर्दे के रोग, फैटी लिवर, ऑटोइम्यून और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों में भी सुरक्षा प्रदर्शित करती है। 

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