संपादकीय : चाहिए समग्र समाधान
उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम की समय-सीमा को निर्वाचन आयोग द्वारा एक सप्ताह बढ़ा दिया जाना केवल प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि उस दबाव की स्वीकारोक्ति भी है, जो इस अत्यंत विस्तृत प्रक्रिया पर शुरू से ही साफ दिख रहा था। मतदाता सूची पुनरीक्षण अपने आप में एक विशाल अभियान है। हर घर जा कर सत्यापन, नए मतदाताओं का पंजीकरण, मृत अथवा स्थानांतरित मतदाताओं का विलोपन और त्रुटियों का सुधार, जिसके लिए समय और संसाधनों की पर्याप्त आवश्यकता होती है। ऐसे में समय वृद्धि का यह निर्णय पूरे अभियान की गति, विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालने वाला है। निर्वाचन आयोग की यह स्वीकारोक्ति कि कम समय सीमा जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं, बीएलओ और अधिकारियों के लिए भारी समस्या पैदा कर रही थी, अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह बात समझना कठिन नहीं कि उत्तर प्रदेश जैसा जनसंख्या और भौगोलिक विस्तार वाला राज्य किसी भी राष्ट्रीय कार्यक्रम के लिए एक अलग कार्ययोजना और अपेक्षाकृत अधिक समय की मांग करता है। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आयोग को यह पूर्वानुमान पहले क्यों नहीं था? क्या यह अदूरदर्शिता नहीं कही जाएगी कि इतनी बड़ी प्रक्रिया को शुरू से ही सीमित समय में बांधा गया और फिर दबाव बढ़ने पर पुन: संशोधन की जरूरत पड़ गई? समय वृद्धि का सबसे बड़ा लाभ निःसंदेह बीएलओ और आम मतदाताओं को मिलेगा। बीएलओ पर वर्षों से काम का अतिरिक्त बोझ, अपर्याप्त प्रशिक्षण तथा जटिल एसआईआर रिपोर्टिंग की बाध्यता लगातार मानसिक और शारीरिक तनाव बढ़ाती रही है। मुरादाबाद में एक बीएलओ की दुखद मृत्यु और विपक्ष के इस आरोप कि भारी दबाव के चलते 20 बीएलओ अब तक आत्महत्या कर चुके हैं, एक गंभीर चेतावनी है। इस स्थिति में निर्वाचन आयोग को केवल खंडन या औपचारिक बयान भर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर कठोर सुधारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। कार्यभार का संतुलित बंटवारा, तर्क संगत डेडलाइन, सुरक्षित कार्य-परिस्थितियां तथा मनोवैज्ञानिक सहायता जैसे कदम अत्यंत आवश्यक हैं।
आज भी मतदाता सूची में संशोधन अथवा नए मतदाता के रूप में पंजीकरण करना, कागजी फॉर्म हो या ऑनलाइन प्रक्रिया- आम लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण है। देश में आधार, पैन, पासपोर्ट और बैंकिंग जैसी सेवाओं का व्यापक डिजिटलीकरण हो चुकने के बाद निर्वाचन आयोग अगर इन नियामक संस्थाओं के डाटा का प्रामाणिक उपयोग कर एक सरल, एकीकृत सत्यापन प्रणाली विकसित करता, तो मतदाता पंजीकरण न केवल सहज होता, बल्कि पुनरीक्षण प्रक्रिया भी अधिक कुशल और लगभग त्रुटिरहित बन सकती थी। फिलहाल केवल एक सप्ताह की समयवृद्धि से यह उम्मीद कि यह प्रक्रिया पूरी तरह सटीक और त्रुटिरहित हो जाएगी, व्यावहारिक नहीं। इससे इतना भर होगा कि कार्यकर्ताओं पर तात्कालिक दबाव घटेगा और कुछ हद तक गुणवत्ता में सुधार संभव है। बीएलओ की आत्महत्याओं पर रोक के लिए केवल समय बढ़ाना पर्याप्त नहीं, कार्यप्रणाली की समग्र समीक्षा और मानवीय दृष्टिकोण से बदलाव आवश्यक है।
