लखनऊ : ज़मीन विवाद के चलते SC-ST में दर्ज कराया झूठा केस, कोर्ट ने महिला को सुनाई सजा
लखनऊ, अमृत विचार: ज़मीन के विवाद के चलते एससी-एसटी एक्ट का झूठा मुक़दमा दर्ज करने वाली शकुंतला देवी को दोषी ठहराकर एससी-एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने तीन साल की क़ैद की सज़ा से दंडित किया है। कोर्ट ने अपने आदेश की प्रति पुलिस कमिश्नर और जिलाधिकारी को भेजने का आदेश देते हुए कहा कि अगर यह मुकदमा दर्ज कराने के बाद मामले की वादिनी शकुंतला देवी को राज्य सरकार से कोई राहत राशि या प्रतिकर मिला है तो उसे तुरंत वापस लिया जाए।
कोर्ट ने ज़िलाधिकारी को निर्देश देते हुए कहा कि किसी आरोपी के ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज होते ही मामला नहीं बन जाता बल्कि जब पुलिस विवेचना के बाद जब आरोपी के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर होती है तब मामला बनता है। वही एससी-एसटी एक्ट का कानून बनाते समय विधायिका की मंशा यह नहीं थी कि झूठा मुकदमा दर्ज करने वाले शरारती तत्वों को प्रतिकर के रूप में करदाताओं के बहुमूल्य धन को दिया जाए।
कोर्ट ने कहा कि ज़िलाधिकारी को निर्देशित किया जाता है कि मात्र रिपोर्ट दर्ज होने पर ही पीड़ित को राहत या प्रतिकर की राशि न दी जाए बल्कि जब मामले में पुलिस चार्जशीट दायर कर दे तब ही प्रतिकर दिया जाए। पत्रावली के अनुसार शकुंतला देवी ने अहमद और उसके साथियों के ख़िलाफ़ वजीरगंज थाने में एससी-एसटी एक्ट की दहाराओ में रिपोर्ट दर्ज कराई थी की आरोपी अहमद, हसीबुल, अमिताभ तिवारी, तारा बाजपेई, वशिष्ठ तिवारी समेत अन्य लोगो ने दो फरवरी 2024 को मकान पर क़ब्ज़ा कर लिया और जानमाल की धमकी देते हुए मारपीट की जिसकी विवेचना एसीपी चौक ने की।
विवेचना में पता चला की ग्राम खरिया सेमरा में दो हज़ार वर्गफ़ूट ज़मीन का विवाद दोनों पक्षों में था और उस मकान पर एक आरोपी हसीबुल रहमान का क़ब्ज़ा था और घटना वाले दिन आरोपियों की मौजूदगी घटना स्थल पर नहीं थी जबकि वादिनी की मौजूदगी घटना स्थल से दूर कैसरबाग में थी।
विवेचना में यह भी पता चला की एक आरोप[ई वशिष्ठ तिवारी की वर्ष 2014 में ही मृत्यु हो गई थी लेकिन मृत व्यक्ति को भी एफआईआर में नामजद कर दिया गया था। इसके बाद विवेचक ने जब पाया कि घटना झूठी है तो विवेचक ने आरोपियों के खिलाफ मामला समाप्त करते हुए वादिनी शकुंतला के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए मामला कोर्ट में भेज दिया।
