सूपा देउराली मंदिर : आस्था, चमत्कार और सौंदर्य का संगम
सूपा देउराली नेपाल के सुदूर पहाड़ी पर स्थित देवी भगवती के एक रूप का मंदिर है, जहां नेपाल के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। भारत के यूपी, बिहार, भूटान से भी हजारों श्रद्धालु जाते रहते हैं। सूपा देउराली की ख्याति नेपाल के प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में तो है ही, साथ ही इसकी पहचान प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी है। सूपा देउराली देवी स्थल से करीब तीन किलोमीटर दूर नरपानी नामक एक पहाड़ी स्थल जहां के रिसोर्ट लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां भारतीय टूरिस्टों की भीड़ सदैव रहती है। यह स्थल नेपाल के लुम्बिनी प्रदेश के अर्घाखांची जिले के संधिखर्क नगरपालिका में स्थित है। -यशोदा श्रीवास्तव
उत्पत्ति और पौराणिक कथा
कहा जाता है कि प्राचीन समय में यह इलाका केवल जंगल और पहाड़ियों से घिरा एक निर्जन स्थान था। एक दिन एक ग्वाला अपनी गायें चराते हुए यहां आया और देखा कि अपने आप एक पत्थर से दूध बह रहा है। वह हैरान होकर गांव लौट गया और सबको इस बात की जानकारी दी। ग्रामीण लोग ने वहां पहुंचकर पूजा-अर्चना आरंभ कर दी। धीरे-धीरे वहीं से देवी का दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ और उस स्थान को सूपा देउराली नाम से जाना जाने लगा। स्थानीय भाषा में ‘सूपा’ का अर्थ ‘उच्च’ या ‘शानदार’ और ‘देउराली’ का अर्थ ‘पहाड़ी दर्रा’ या ‘विश्राम स्थल’ होता है। यानी ‘ऊंचे पहाड़ी पर विराजमान देवी का मंदिर।’ इस मंदिर पर आकर पूजा-अर्चना करने से यूं तो तमाम प्रकार की मन्नतें पूरी होती हैं, लेकिन कहते हैं कि कुमारी लड़कियां सुंदर व खुशहाल वर के लिए यहां आकर पूजा अर्चना करती हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य
मंदिर के चारों ओर हरियाली, पर्वत श्रृंखलाएं और दूर-दूर तक फैले हिमालय के दृश्य इस स्थल को अद्भुत बनाते हैं। सुबह के समय धुंध से घिरी पहाड़ियों के बीच से उगता सूरज और मंदिर की घंटियों की गूंज वातावरण को आध्यात्मिक बना देती है।
आस्था और विनम्रता का संदेश
स्थानीय लोककथाओं में एक चमत्कारिक घटना आज भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि कई वर्ष पहले एक नेपाली जवान, जो ब्रिटिश सेना में सेवा कर चुका था, छुट्टी लेकर अपने गांव लौट रहा था। गर्व से भरा हुआ वह जब सूपा देउराली के पास पहुंचा, तो गांव वालों ने उसे देवी के दर्शन करने की सलाह दी, लेकिन घमंडी सेना का जवान हंसकर बोला, “मैं सैनिक हूं, मेरा कोई देवी-देवता क्या कर सकते हैं?” फिर वह मंदिर के पास जाकर उपहास पूर्वक एक पत्थर पर पैर रखकर कुछ व्यंग्य भरे शब्द बोला। तभी अचानक उसका शरीर उसी पत्थर से चिपक गया। गांव वाले भयभीत हो उठे और पुजारी को बुलाया गया। पुजारी ने देवी से क्षमायाचना करते हुए पूजा की और घंटों की प्रार्थना के बाद ही वह जवान पत्थर से अलग हो सका। वह रोते हुए देवी के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगते हुए अपनी भूल का पश्चाताप किया।आज भी उस स्थान को “सैनिक टासेको ढुंगा” यानी “जहां सैनिक चिपक गया था” कहा जाता है। वहां भी आने वाले श्रद्धालु फूल, धूप और दीप अर्पित कर देवी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
विनम्रता का जीवंत प्रतीक
सूपा देउराली मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और विनम्रता का जीवंत प्रतीक है। यह स्थान हमें यह सिखाता है कि विश्वास और नम्रता में ही शक्ति निहित है। अर्घाखांची की यह पवित्र धरा आज भी भक्तों के लिए आस्था का दीप प्रज्ज्वलित किए हुए है, जहां हर कदम पर भक्ति की सुगंध और देवी की कृपा की अनुभूति होती है।
ऐसे पहुंचे मंदिर
सुपा देउराली मंदिर श्रद्धा, विश्वास और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है। समुद्र तल से लगभग 1,500 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है । यहां तक पहुंचने के लिए नेपाल के अंदर अर्घाखांची वाया बुटवल आना होता है, जबकि भारतीय सीमा के बढ़नी, खुनुवा, ककरहवा आदि से होकर आना होता है। बढ़नी, खुनुवा से इसकी दूरी 75 से 100 किमी की है, जबकि ककरहवा से यह दूरी थोड़ी बढ़ जाती है। साधन की जहां तक बात है, तो यदि अपने साधन से हैं, तो प्रतिदिन के हिसाब से भारतीय मुद्रा में 350 रुपये खर्चा आता है और यदि आप नेपाली साधन से जाना चाहें तो दांग, नेपालगंज से अर्घाखांची जाने नेपाली बस या बिंगर हमेशा उपलब्ध है।
