माय फर्स्ट राइड : जब परिवार ने कहा- हमारी बहु बहुत अच्छी ड्राइवर है

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Published By Anjali Singh
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मैंने जब पहली बार कार चलाना सीखने का निर्णय लिया, तो मन में उत्साह के साथ-साथ डर भी था। बचपन से ही कार चलाते हुए लोगों को देखकर लगता था कि यह कोई बहुत कठिन काम है, जो शायद मेरे बस का नहीं। घर में अक्सर यही सुनने को मिलता था-“तुमसे नहीं होगा”, “यह काम पुरुषों का है” या “ऑटो-रिक्शा और टैक्सी ही ठीक हैं।” लेकिन कहीं न कहीं मन में यह इच्छा थी कि मैं भी आत्मनिर्भर बनूं और बिना किसी पर निर्भर हुए खुद गाड़ी चला सकूं।

यह इच्छा मैंने डरते-डरते अपने पति को बताई, तो उन्होंने दो मिनट सोचकर कहा ठीक है कल सुबह से तुम्हारी कार की क्लास शुरू होगी। पहले दिन जब मैं ड्राइविंग स्कूल पहुंची, तो दिल तेज-तेज धड़क रहा था। इंस्ट्रक्टर ने जब कार की सीट पर बैठने को कहा, तो हाथ-पैर जैसे सुन्न हो गए। स्टेयरिंग पकड़ते ही लगा कि मैं किसी बड़ी जिम्मेदारी को थाम रही हूं। क्लच, ब्रेक और एक्सीलेरेटर तीनों को समझना अपने-आप में एक चुनौती था। शुरुआत में कार बार-बार बंद हो जाती थी और पीछे से हॉर्न की आवाज़ें आत्मविश्वास को और डगमगा देती थीं।

सबसे मुश्किल था सड़क का डर। सामने से आती गाड़ियां, अचानक मोड़ लेते वाहन और पैदल चलते लोग सब कुछ मुझे घबराहट में डाल देता था। कई बार लगा कि शायद मैं यह सीख ही नहीं पाऊंगी। एक दिन तो गलती से ब्रेक की जगह एक्सीलेरेटर दब गया और इंस्ट्रक्टर को तुरंत कंट्रोल संभालना पड़ा। उस दिन घर आकर मैंने खुद से कहा “बस, अब नहीं।”

लेकिन अगले ही पल मन ने समझाया कि डर से भागने से कुछ हासिल नहीं होगा। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ता गया। रोज सुबह थोड़ा जल्दी उठकर ड्राइविंग क्लास के लिए जाना अब मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। इंस्ट्रक्टर की सीख और खुद पर भरोसा दोनों ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया। अब कार कम बंद होती थी और गियर बदलते समय हाथ कांपते नहीं थे। जब पहली बार मैंने बिना किसी मदद के कार स्टार्ट की और कुछ दूरी तक सही तरीके से चला पाई, तो वह खुशी शब्दों में बयान करना मुश्किल है।

कार सीखने का सबसे बड़ा सबक यह था कि सड़क पर धैर्य सबसे ज़रूरी है। जल्दीबाजी या घबराहट दोनों ही नुकसानदेह हैं। मैंने सीखा कि दूसरों की गलती पर भी संयम बनाए रखना जरूरी है। कई बार पुरुष ड्राइवर ताने मारते या मजाक उड़ाते, लेकिन मैंने खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया। धीरे-धीरे मैं समझने लगी कि आत्मविश्वास ही सबसे बड़ा हथियार है। जिस दिन मैंने ड्राइविंग लाइसेंस टेस्ट पास किया, उस दिन मेरी आंखों में खुशी के आंसू थे। यह सिर्फ एक लाइसेंस नहीं था, बल्कि मेरी आजादी की चाबी थी। अब मैं बच्चों को स्कूल छोड़ने, बाजार जाने या अचानक किसी काम से बाहर निकलने के लिए किसी पर निर्भर नहीं थी। परिवार वालों का नजरिया भी बदल गया। वही लोग, जो पहले मना करते थे, अब गर्व से कहते हैं- “हमारी बेटी बहुत अच्छी ड्राइवर है।”

आज जब मैं खुद कार चलाकर सड़क पर निकलती हूं, तो महसूस होता है कि यह सिर्फ ड्राइविंग नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता का अनुभव है। कार सीखना मेरे लिए एक कौशल ही नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, साहस और खुद पर भरोसा करने की सीख भी था। हर महिला को यह अनुभव जरूर लेना चाहिए, क्योंकि जब हम डर को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हैं, तभी हमें अपनी असली ताकत का एहसास होता है।-डॉ. आरती मोहन,कानपुर