पौराणिक कथा: चौसर का षड्यंत्र: पांडवों पर दुर्योधन की चाल
एक दिन युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा कि वह युद्ध की संभावना को खत्म करने के लिए तेरह वर्षों तक किसी भी भाई या बंधु को बुरा-भला नहीं कहेंगे। उन्होंने यह भी संकल्प लिया कि वे हमेशा अपने भाइयों और बंधुओं की इच्छा के अनुसार कार्य करेंगे और ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे आपसी मनमुटाव पैदा हो। युधिष्ठिर की यह बातें उनके भाइयों को भी सही लगीं और उन्होंने तय किया कि वे झगड़े और फसाद का कारण नहीं बनेंगे। वहीं दूसरी ओर, राजसूय यज्ञ की भव्यता और पांडवों की यश-समृद्धि दुर्योधन के मन में ईर्ष्या और जलन पैदा कर रही थी। वह देख रहा था कि पांडवों के मित्र देश-राजा हैं और उनकी शक्ति और सम्मान लगातार बढ़ रहा है।
एक दिन दुर्योधन इसी चिंता और उदासी में अपने महल के एक कोने में खड़ा था कि उसका मामा शकुनि वहां आ गए। शकुनि ने पूछा कि वह इतना दुखी और चिंतित क्यों है? दुर्योधन ने उत्तर दिया कि पांडवों की संपन्नता देखकर उसका मन उदास है और जीवन का उत्साह कम हो गया है। शकुनि ने उसे सांत्वना दी और कहा कि पांडव उसके भाई ही हैं और उनके सौभाग्य पर जलन करना उचित नहीं है। उन्होंने समझाया कि पांडव केवल वही प्राप्त कर रहे हैं, जो उनका वैधानिक अधिकार है। साथ ही, दुर्योधन के पास भी द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कर्ण और अन्य वीर साथी हैं, जो उसका समर्थन कर सकते हैं। शकुनि ने दुर्योधन को सुझाव दिया कि पांडवों पर विजय पाने के लिए युद्ध के बजाय चतुराई अपनाई जाए।
शकुनि ने दुर्योधन को युधिष्ठिर का कमजोर पक्ष बताया- चौसर का खेल। युधिष्ठिर को यह खेल पसंद था, लेकिन वह इसे अच्छी तरह नहीं खेल पाते थे। शकुनि ने योजना बनाई कि वे दुर्योधन की ओर से खेलेंगे और युधिष्ठिर को हराकर उसका राज्य और ऐश्वर्य बिना युद्ध के हासिल कर लिया जाएगा। दुर्योधन इस विचार से उत्साहित हो उठा और दोनों ने धृतराष्ट्र से पांडवों को खेल के लिए बुलाने की अनुमति मांगी।
धृतराष्ट्र ने पहले तुरंत अनुमति देने से इंकार किया और कहा कि वे विदुर से भी सलाह लेंगे। उन्होंने चिंता जताई कि यह जुआ वंश के लिए नुकसानदायक हो सकता है। विदुर ने चेतावनी दी कि खेल से आपसी मनमुटाव और झगड़े-फसाद बढ़ेंगे, जिससे कुल में भारी विपदा आएगी, लेकिन दुर्योधन के आग्रह और पिता के पुत्रप्रेम के कारण धृतराष्ट्र ने आखिरकार युधिष्ठिर को खेल के लिए न्यौता भेजने की अनुमति दे दी और सभा मंडप बनाने का आदेश भी दिया।
इस प्रकार, युधिष्ठिर का निष्कलंक चरित्र और पांडवों का सौभाग्य दुर्योधन के मन में ईर्ष्या की आग भड़का गया। शकुनि की चतुराई और दुर्योधन की लालसा ने ऐसा षड्यंत्र रचा, जो भविष्य में महाभारत युद्ध की नींव बन गया। चौसर का यह खेल केवल मनोरंजन नहीं था, बल्कि यह योजना बनकर पांडवों के साम्राज्य और सत्ता पर कब्जा करने का माध्यम बन गया। - फीचर डेस्क
