VB-G-RAM-G बिल विवाद : कांग्रेस नेता पी चिदंबरम बोले- मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाना उनकी दूसरी हत्या है

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
On

चेन्नई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने रविवार को कहा कि मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाना ‘‘महात्मा गांधी की दूसरी हत्या’’ है। उन्होंने कहा कि पूर्व ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना बहाल होने तक कांग्रेस का विरोध जारी रहेगा। पूर्व वित्त मंत्री ने यहां एक प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पार्टी घर-घर जाकर, गांव-गांव जाकर इस धोखाधड़ी का पर्दाफाश करेगी और यह अधिनियम निरस्त होने तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा।’’ 

विपक्ष के विरोध के बीच 18 दिसंबर को संसद ने वीबी-जी राम जी विधेयक, 2025 को पारित किया था। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने रविवार को इस विधेयक को मंजूरी दे दी। इस विधेयक का उद्देश्य 20 साल पुराने ग्रामीण रोजगार कानून ‘मनरेगा’ को प्रतिस्थापित करना है और प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति वित्त वर्ष 125 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करना है। 

चिदंबरम ने कहा, ‘‘मेरे अनुसार, यह महात्मा गांधी की दूसरी हत्या है। उनकी हत्या 30 जनवरी, 1948 को हुई थी। उन्होंने महात्मा गांधी को फिर से मार डाला है - उन्होंने उनकी स्मृति को मिटाया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘आप गांधी और नेहरू को आधिकारिक अभिलेखों से मिटाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन वे भारत की जनता की गहरी चेतना में बुद्ध या यीशु की तरह जीवित हैं। कोई भी सरकारी आदेश उन्हें मिटा नहीं सकता।’’ 

चिदंबरम ने कहा कि केंद्र द्वारा किए गए बदलावों ने ‘‘मांग आधारित अधिकार को विवेकाधीन योजना’’ में बदल दिया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को रोजगार की गारंटी से वंचित कर दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘मूल कानून के तहत, यदि कोई व्यक्ति काम की मांग करता था, तो सरकार उसे उपलब्ध कराने के लिए कानूनी रूप से बाध्य थी। अब, लोग तभी काम मांग सकते हैं जब सरकार पहले उन्हें काम की पेशकश करे।’’ 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने नए विधेयकों के शीर्षक के लिए सरकार द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे नामों पर भी सवाल उठाया, जिन्हें उन्होंने ‘‘अंग्रेजी अक्षरों में लिखे हिंदी शब्द’’ बताया। चिदंबरम ने कहा कि ‘विकसित भारत - जी राम जी’ जैसे नाम दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए ‘‘भ्रामक और समझने में मुश्किल हैं।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘शायद मंत्रियों को भी इन नामों का मतलब समझ में न आए। कानून कहता है कि जब तक राज्य इस नाम का इस्तेमाल नहीं करेंगे, उन्हें धनराशि नहीं मिलेगी।’’ चिदंबरम ने दावा किया कि यह योजना - जो कभी सार्वभौमिक थी - अब केंद्र द्वारा चुने गए ‘‘जिलों’’ तक ही सीमित रहेगी। 

उन्होंने यह भी दावा किया कि मनरेगा के मूल ढांचे के विपरीत, जो हर ग्रामीण जिले तक फैला हुआ था, नया कानून अब राष्ट्रीय स्तर का नहीं है और इसमें शहरी या नगर पंचायत क्षेत्र शामिल नहीं होंगे। वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया कि वित्तपोषण की जिम्मेदारी राज्यों पर डाली जा रही है क्योंकि पहले केंद्र सरकार मजदूरी का पूरा भुगतान और सामग्री खर्च का 75 प्रतिशत वहन करती थी।

उन्होंने कहा कि नयी नीति में एक ‘‘मानक’’ तय कर दिया गया है, जिसके बाद राज्यों को अपनी ‘‘आर्थिक क्षमता’’ के आधार पर योगदान देना होगा। चिदंबरम ने कहा, ‘‘यदि कोई राज्य कहता है कि उसके पास धन नहीं है, तो योजना वहां लागू नहीं की जाएगी।’’ उन्होंने यह भी बताया कि बजटीय सहायता में भी भारी गिरावट आई है। 

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘चार साल पहले आवंटन 1,11,000 करोड़ रुपये था। पिछले तीन वर्षों से यह 86,000 करोड़ रुपये है। अगले वर्ष यह केवल 65,000 करोड़ रुपये है। 65,000 करोड़ रुपये से अधिक का कोई भी खर्च राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी।’’ चिदंबरम ने कहा कि मनरेगा को वापस लेने से सबसे ज्यादा नुकसान ‘‘अत्यंत गरीब’’ वर्ग को होगा, खासकर दिहाड़ी मजदूरों और महिलाओं को। 

उन्होंने कहा, ‘‘यह योजना दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर 12 करोड़ लोगों के लिए एक सुरक्षा कवच है। तमिलनाडु में 90 से 95 प्रतिशत मजदूर महिलाएं हैं, जिन्हें सबसे ज्यादा नुकसान होगा।’’ चिदंबरम ने याद दिलाया कि मूल अधिनियम 2005 में भाजपा के समर्थन से संसद में सर्वसम्मति से पारित हुआ था। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार मनरेगा को संप्रग सरकार की विफलताओं का ‘‘जीवित स्मारक’’ कहा था। चिदंबरम ने कहा, ‘‘अब वही सरकार इसे खत्म कर रही है।’’ 

संबंधित समाचार